Poets and Pancakes Class 12 Summary & Explanation

खुलकर सीखें के इस ब्लॉगपोस्ट Poets and Pancakes Class 12 Summary & Explanation में आप Class 12 NCERT English Flamingo Chapter 6 यानि Poets and Pancakes Class 12 का सारांश और लाइन बाई लाइन करके हिन्दी व्याख्या करना सीखेंगे।

सबसे पहले आप इस चैप्टर यानि Poets and Pancakes के बारे में पढ़ते हुए लेखक के बारे में जानेंगे और फिर इस चैप्टर का Summary पढ़ने के बाद आप इस पाठ के एक-एक लाइन का हिंदी अनुवाद भी इसी पेज पर पढ़ सकेंगे।

About the Lesson – Poets and Pancakes

“Poets and Pancakes” is an excerpt from My Years with Boss by Asokamitran. It humorously describes the author’s experiences at Gemini Studios in Chennai, one of India’s most influential film studios during the early years of Indian cinema. The lesson offers glimpses into the functioning of the studio, the quirky personalities working there, and the author’s reflections on cinema, literature, and politics. The title refers to “Pancake,” the popular brand of make-up used in the studios. Through light-hearted satire and gentle humour, the author portrays the absurdities of the studio-life while also reflecting on the cultural and political climate of the time.

About the Lesson in Hindi

“पोएट्स एंड पैनकेक्स” अशोकमित्रन द्वारा लिखित माई इयर्स विद बॉस से एक अंश है। यह भारतीय सिनेमा के शुरुआती वर्षों के दौरान भारत के सबसे प्रभावशाली फिल्म स्टूडियो में से एक चेन्नई के जेमिनी स्टूडियो में लेखक के अनुभवों का हास्यास्पद तरीके से वर्णन करता है। यह पाठ स्टूडियो के कामकाज, वहाँ काम करने वाले विचित्र व्यक्तित्वों और सिनेमा, साहित्य और राजनीति पर लेखक के विचारों की झलकियाँ प्रदान करता है। शीर्षक स्टूडियो में इस्तेमाल किए जाने वाले मेकअप के लोकप्रिय ब्रांड “पैनकेक” को संदर्भित करते हैं। हल्के-फुल्के व्यंग्य और सौम्य हास्य के माध्यम से, लेखक स्टूडियो-जीवन की बेतुकी बातों को चित्रित करते हैं और साथ ही उस समय के सांस्कृतिक और राजनीतिक माहौल पर भी विचार करते हैं।


About the Author – Asokamitran

Asokamitran (1931-2017) was a celebrated Tamil writer known for his simple yet profound writing style. His real name was Jagadisa Thyagarajan. He is best known for his portrayal of middle-class life in urban India. He worked at Gemini Studios in Chennai, and his experiences there inspired his famous memoir My Years with Boss. Asokamitran wrote novels, short stories, and essays in Tamil, many of which have been translated into English. His works are admired for their quiet humour, sharp observation, and humanistic touch.

About the Author in Hindi

अशोकमित्रन (1931-2017) एक प्रसिद्ध तमिल लेखक थे, जो अपनी सरल लेकिन गहन लेखन शैली के लिए जाने जाते थे। उनका असली नाम जगदीश त्यागराजन था। उन्हें शहरी भारत में मध्यवर्गीय जीवन के चित्रण के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। उन्होंने चेन्नई के जेमिनी स्टूडियो में काम किया और वहां के अनुभवों ने उनके प्रसिद्ध संस्मरण माई इयर्स विद बॉस को प्रेरित किया। अशोकमित्रन ने तमिल में उपन्यास, लघु कथाएँ और निबंध लिखे, जिनमें से कई का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। उनकी रचनाओं को उनके शांत हास्य, तीखे अवलोकन और मानवतावादी स्पर्श के लिए सराहा जाता है।


Summary of Poets and Pancakes

“Poets and Pancakes” is a humorous account of the author’s time at Gemini Studios, focusing on the eccentricities of the make-up department, the dreams and frustrations of its staff, and the influence of literature and politics in the film world. The essay introduces interesting characters like the make-up boy, Kothamangalam Subbu, and the mysterious visit of Stephen Spender. With wit and satire, Asokamitran also highlights the contrasts between art, cinema, and ideology in a light-hearted way.

Hindi Summary of Poets and Pancakes

“पोएट्स एंड पैनकेक्स” लेखक के जेमिनी स्टूडियो में बिताए समय का एक हास्यपूर्ण विवरण है, जो मेकअप विभाग की विलक्षणताओं, उसके कर्मचारियों के सपनों और कुंठाओं तथा फिल्म जगत में साहित्य और राजनीति के प्रभाव पर केंद्रित है। निबंध में मेकअप बॉय, कोथमंगलम सुब्बू और स्टीफन स्पेंडर की रहस्यमयी यात्रा जैसे दिलचस्प पात्रों का परिचय दिया गया है। बुद्धि और व्यंग्य के साथ, अशोकमित्रन ने हल्के-फुल्के अंदाज में कला, सिनेमा और विचारधारा के बीच के अंतर को भी उजागर किया है।


Poets and Pancakes Summary in English

The essay begins with the description of the make-up department of Gemini Studios where truckloads of a make-up brand called Pancake were used. The department, which symbolized national integration with people from various regions of India, could turn any decent-looking person into a hideous figure.

The writer humorously narrates how even the office boy, who hoped to become a star or writer, ended up merely applying make-up to crowd players. The essay introduces Kothamangalam Subbu, the most loved yet envied man in the studio, who was multi-talented and served as the studio’s No. 2.

The author also speaks about the Story Department, consisting of poets and writers who, despite having no serious work, held prestigious positions. The visit of a group called Moral Re-Armament Army (MRA) and an unfamiliar English poet to the studio creates confusion. The staff, who had limited knowledge of world literature and politics, failed to understand the significance of these visits.

Later, the author discovers that the mysterious poet was Stephen Spender, an English poet and editor, whose works he comes across in a British magazine years after the encounter. The essay ends with the author reflecting on how writers and intellectuals get trapped in odd situations far removed from their natural calling.

The narrative, rich in satire, highlights the superficiality of the film world, the innocent ignorance of the studio staff, and the absurdities that arise from the clash between art, commerce, and ideology.

Poets and Pancakes Summary in Hindi

निबंध की शुरुआत जेमिनी स्टूडियो के मेकअप विभाग के वर्णन से होती है, जहाँ पैनकेक नामक मेकअप ब्रांड के ट्रक लोड किए जाते थे। यह विभाग, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के साथ राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतीक था, किसी भी सभ्य दिखने वाले व्यक्ति को एक भयानक व्यक्ति में बदल सकता था।

लेखक ने मजाकिया अंदाज में बताया कि कैसे एक ऑफिस बॉय, जो स्टार या लेखक बनने की उम्मीद करता था, भीड़ के खिलाड़ियों को मेकअप लगाने तक ही सीमित रह गया। निबंध में कोथमंगलम सुब्बू का परिचय दिया गया है, जो स्टूडियो में सबसे प्रिय लेकिन ईर्ष्यालु व्यक्ति था, जो बहुमुखी प्रतिभा का धनी था और स्टूडियो में नंबर 2 के रूप में काम करता था।

लेखक कहानी विभाग के बारे में भी बात करते हैं, जिसमें कवि और लेखक शामिल हैं, जिन्होंने कोई गंभीर काम न होने के बावजूद प्रतिष्ठित पदों पर काम किया। स्टूडियो में मोरल री-आर्ममेंट आर्मी (एमआरए) नामक एक समूह और एक अपरिचित अंग्रेजी कवि का दौरा भ्रम पैदा करता है। कर्मचारी, जिन्हें विश्व साहित्य और राजनीति का सीमित ज्ञान था, इन यात्राओं के महत्व को समझने में विफल रहे।

बाद में, लेखक को पता चलता है कि रहस्यमय कवि स्टीफन स्पेंडर थे, जो एक अंग्रेजी कवि और संपादक थे, जिनकी रचनाएँ उन्हें मुठभेड़ के कई साल बाद एक ब्रिटिश पत्रिका में मिलती हैं। निबंध लेखक के इस विचार के साथ समाप्त होता है कि कैसे लेखक और बुद्धिजीवी अपनी स्वाभाविक बुलाहट से दूर विषम परिस्थितियों में फंस जाते हैं। व्यंग्य से भरपूर यह कथा फिल्म जगत की सतहीता, स्टूडियो कर्मचारियों की मासूम अज्ञानता और कला, वाणिज्य और विचारधारा के बीच टकराव से उत्पन्न होने वाली बेतुकी बातों को उजागर करती है।


Summary of all chapters of Class 12 English

QnA of Poets and Pancakes

Poets and Pancakes Explanation in Hindi

इस चैप्टर को एक तमिल लेखक अशोकमित्रन के द्वारा लिखे गये पुस्तक ‘माई इयर्स विद बॉस’ से लिया गया है। नीचे Class 12 NCERT English Flamingo Chapter 6 यानी Poets and Pancakes Class 12 का Paragraph wise Hindi Translation दिया गया है।

[1] Pancake was………………….in Madras.

जैमिनी स्टूडियोज में श्रृंगार के जिस समान को ट्रक भर भरकर मँगाया जाता था उसका विशिष्ट नाम पैनकेक था। ग्रीटा गार्बो ने इसे अवश्य ही काम में लिया होगा, कुमारी गौहर ने भी इसे काम में लिया होगा, वैजयन्तीमाला ने भी इसे जरूर काम में लिया होगा किन्तु रति अग्निहोत्री ने इसके बारे में सुना भी नहीं होगा। जैमिनी स्टू‌डियोज का श्रृंगार विभाग ऊपर की मंजिल पर था जिसके बारे में विश्वास किया जाता था कि वह कभी रॉबर्ट क्लाइव का अस्तबल था। शहर में एक दर्जन भवनों को उसका निवास स्थान बताया जाता था। भारत के सुदूरवर्ती कोनों में असम्भव लड़ाइयाँ लड़ी। अपने छोटे जीवन और मद्रास में उससे भी संक्षिप्त ठहराव के दौरान लगता है कि रॉबर्ट क्लाइव ने बहुत निवास-स्थानों को बदला होगा। मद्रास के सेन्ट जार्ज के किले की सेन्ट मेरी चर्च में एक सुकुमारी से विवाह किया।

[2] The make-up…………………movie.

श्रृंगार वाला कमरा हेयर कटिंग सैलून जैसा लगता था जिसमें आधा दर्जन बड़े दर्पणों के चारों ओर हर दिशा में बत्तियाँ थीं। वे सभी तापदीप्त (बहुत तेज प्रकाश वाली) बत्तियाँ थी, अंतः श्रृंगार करवाने वालों की तप्त कष्ट से प्रभावित होने की आप कल्पना कर सकते हैं। पहले श्रृंगार विभाग का मुखिया एक बंगाली था जो स्टूडियो की तुलना में बहुत बड़ा हो गया और (काम छोड़कर) चला गया। उसके बाद एक महाराष्ट्र (मराठी) वाला आया जिसकी मदद एक धारवाड़ कन्नड़िया, एक आन्ध्र निवासी, मद्रास का एक भारतीय ईसाई, एक एंग्लो-बर्मी और आम स्थानीय तमिल लोगों द्वारा की जाती थी। यह सब ye दिखाता है कि ऑल इण्डिया रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा राष्ट्रीय एकता पर कार्यक्रमों के प्रसारण की शुरुआत होने से बहुत पहले ही वहाँ अत्यधिक राष्ट्रीय एकता थी। राष्ट्रीय एकता में बंधे श्रृंगार करने वाले लोगों का यह दल किसी भी अच्छे भले दिखने वाले को भारी मात्रा पेनकेक और अन्य स्थानीय स्तर पर बनाई गई क्रीम और द्रवों के द्वारा भद्दे लालिमायुक्त भयावह दैत्य में बदल सकता था। उन दिनों शूटिंग मुख्यतः स्टूडियो में ही होती थी और केवल पाँच प्रतिशत शूटिंग बाहर होती थी। मुझे लगता है कि फिल्म में दर्शनीय दिख सकें इसके लिए सैट और स्टूडियो के प्रकाश में लड़कियों तथा लड़कों को भद्दा बनाने की जरूरत होती थी, अर्थात् भद्दे श्रृंगार के बाद वे फिल्म में सुंदर दिख जाते थे।

[3] A strict……………….a poet.

श्रृंगार विभाग में कठोर पदानुक्रम कायम रखा जाता था। मुख्य श्रृंगार कर्ता मुख्य अभिनेताओं और मुख्य अभिनेत्रियों को बदसूरत बनाता था, उसका वरिष्ठ सहायक दूसरे नम्बर के नायक और नायिका को, कनिष्ठ सहायक मुख्य हास्य कलाकार को और फिर इसी क्रम में वह आगे बढ़ता था। भीड़ की भूमिका अदा करने वाले पात्रों की जिम्मेदारी ऑफिस बॉय की होती थी। (जैमिनी स्टूडियोज के श्रृंगार विभाग में भी एक ऑफिस बॉय था।) जिस दिन भीड़ की शूटिंग होती थी, आप उसे बड़े बर्तन में रंग घोलते और भीड़ की भूमिका अदा करने वाले पात्रों पर पोतते हुए या लगाते हुए देख सकते थे। श्रृंगार करते समय विचार यह रहता था कि चेहरे का प्रत्येक छिद्र ढक जाए। वह सही अर्थ में लड़का नहीं था वह चालीस के आस-पास था और उसने उत्कृष्ट कलाकार या अच्छा पटकथा लेखक, निर्देशक या गीतकार बनने की आशा में वर्षों पूर्व स्टूडियों में प्रवेश किया था। वह थोड़ा-सा कवि भी था।

[4] In those………………..his epics.

उन दिनों मैं एक कोठरी में काम किया करता था जिसकी दो पूरी दिशाएँ फ्रेन्च (बड़ी-बड़ी) खिड़कियाँ थीं। (उस समय मैं यह नहीं जानता था कि इन्हें फ्रेन्च विन्डो कहा जाता है) दिनभर काफी समय तक अखबार फाड़ते हुए मुझे बैठे देखकर लोग सोचते थे कि मैं कुछ भी नहीं करता था। यह भी संभव है कि बॉस भी यही सोचते हों इसलिए जिसे भी लगता मुझे काम दिया जाना चाहिए वह मेरे कमरे में आता और एक लंबा भाषण दे देता था। श्रृंगार विभाग का ‘लड़का’ तय कर चुका या कि मुझे यह जानकारी दी जानी चाहिए कि किस तरह से एक साहित्यिक प्रतिभा एक ऐसे विभाग में बेकार हो रही थी जो केवल नाइयों (बाल बनाने वालों) और किसी कुमार्गी के लिए उपयुक्त था। शीघ्र ही में प्रार्थना करता कि भीड़ की शूटिंग हर समय चलती रहे। अन्यथा मैं उसके काव्य से नहीं बच सकता था।

[5] In all instances…………………for films.

चिड़चिड़ाहट (कुंठा) की अवस्था में आप पाएंगे कि खुले तौर पर अथवा गुप्त रूप से क्रोध एक ही व्यक्ति की ओर निर्देशित होता है और श्रृंगार विभाग के इस आदमी को विश्वास था कि उसके सारे दुःख, अपयश और उपेक्षा कोटमंगलम सुब्बु के कारण थे। सुब्बू जैमिनी स्टूडियोज में दूसरे नंबर पर था। फिल्मों में हमारे बड़े श्रृंगार करने वाले लड़के से ज्यादा उत्साहवर्धक शुरुआत उसकी नहीं हो सकती थी। इसके विपरीत उसने अपेक्षाकृत अधिक अनिश्चित और कठिन समय देखा होगा क्योंकि जब उसने अपना कैरियर (जीविकोपार्जन) शुरू किया, उस समय कोई सुव्यवस्थित फिल्म निर्माण कम्पनी अथवा स्टूडियो नहीं थे। शिक्षा के संदर्भ में भी, खासकर औपचारिक शिक्षा के मामले में सुब्बू हमारे लड़कों से ज्यादा आगे नहीं था। परन्तु ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण-जो कि वास्तव में एक गुण था। उसने अधिक समृद्धिपूर्ण हालात तथा लोग देखे होंगे। असफल फिल्म में भाग लेने के बाद भी उसमें हर समय खुश दिखाई देने की क्षमता थी। उसके पास हर समय दूसरों के लिए काम होता था- वह स्वयं कोई कार्य नहीं कर पाता था किन्तु उनकी वफादारी ने उसकी पहचान पूरी तरह से अपने संस्था, प्रधान फिल्म निर्माण में करवा दी थी और उसकी संपूर्ण रचनात्मक योग्यता को अपने संस्था प्रधान फिल्म निर्माता के फायदे में लगा दिया। वह फिल्मों के लिए ही पूरी तरह से अनुकूल बना था।

[6] Here was………………….20th century.

वह एक ऐसा आदमी था जिसे जब भी आदेश दिया जाता तब प्रेरित किया जा सकता था। “चूहा पानी में बाधिन से लड़ता है और उसे मार देता है किन्तु शावकों पर दया करता है और प्यार से उनकी देखभाल करता है- “मैं नहीं जानता इस दृश्य का फिल्मांकन कैसे किया जाए, निर्माता कहता था और सूब्बू चूहे के शिकार (चीते) के बच्चों के ऊपर प्यार उड़ेलने के चार तरीके बता देता।” ठीक लेकिन मैं नहीं जानता कि यह पर्याप्त प्रभावशाली है” निर्माता कहता है और एक मिनट में ही सुब्बू चौदह और विकल्प बता देता। सुब्बू जैसे आदमी के आसपास होने पर फिल्म बनाना बहुत ही आसान रहा होगा और ऐसा था भी यदि कोई आदमी ऐसा था जिसने जैमिनी स्टूडियोज को उसके स्वर्णिम वर्षों में दिशा और परिभाषा दी थी तो वह सुब्बू था। एक कवि के रूप में सुब्बू की अलग पहचान थी और यद्यपि वह निश्चय ही ज्यादा जटिल और उच्च रचनाएँ लिख सकता था तथापि उसने जानबूझ कर अपने काव्य को जन-सामान्य को संबोधित किया। फिल्मों में उसकी सफलता ने उसकी साहित्यिक उपलब्धियों को ढक लिया और इसे कम कर दिया या उसके समालोचकों को ऐसा लगता था। उसने लोक व्यवहार पर आधारित तथा लोक भाषा में कई सच्ची मौलिक कथा काव्यों की रचना की तथा उसने अव्यवस्थित उपन्यास थलाना मोहनम्बल! लिखा जिसमें दर्जनों चरित्रों को कुशलतापूर्वक उकेरा गया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ की देव-दासियों की मनःस्थिति तथा हाव-भावों का वर्णन उसने बहुत सफलतापूर्वक किया।

[7] He was……………………for Subbu.

वह एक आश्चर्यजनक अभिनेता था – उसने कभी भी मुख्य भूमिका पाने की इच्छा नहीं की किन्तु किसी भी फिल्म में जो भी सहायक भूमिका अदा की उसने तथाकथित मुख्य कलाकारों से बेहतर भूमिका अदा की। हर मिलने वाले के प्रति उसमें सच्चा प्यार था और उसका घर पास और दूर के दर्जनों रिश्तेदारों और परिचितों का स्थाई निवास था। वह इतने लोगों को भोजन करा रहा था और मदद कर रहा था इस बात के प्रति जागरूक होना भी सुब्बू के स्वभाव के विपरीत था। ऐसा दानी और फिजूलखचीं वाला आदमी और फिर भी उसके दुश्मन थे! क्या यह इसलिए था कि वह बॉस के बहुत करीब और खास था? या फिर यह उसका सामान्य व्यवहार था जो चापलूस के व्यवहार से मिलता जुलता था? या हर चीज के बारे में अच्छा बोलने की उसकी तत्परता? कुछ भी हो, श्रृंगार विभाग में वह आदमी (Office boy) था जो सूब्बू के लिए अनिष्टता की कामना करता था।

[8] You saw…………………..sad end.

आप सुब्बू को सदा बॉस के साथ देखते किन्तु उपस्थिति पत्रक में उसका नाम कहानी विभाग में शामिल था, जिसमें एक वकील, लेखकों तथा कवियों का एक समूह शामिल था। वकील को आधिकारिक तौर पर कानूनी सलाहकार भी कहा जाता या, परंतु हर कोई उसे उसके विपरीत बताता था। एक अत्यधिक प्रतिभावान अभिनेत्री जो वहुत तुनक स्वभाव वाली भी थी, एक बार सैट पर भड़क उठी। जब सन्न खड़े थे वकील ने चुपचाप आवाज रिकार्ड करने वाला यन्त्र चालू कर दिया। जब अभिनेत्री साँस लेने के लिए रूकी तो वकील ने उससे कहा “कृपया एक मिनट, और रिकार्ड को फिर से चालू कर दिया। फिल्म निर्माता के बारे में अभिनेत्री के क्रोध पूर्ण भाषण में कुछ भी अकयनीय अथवा दोषी दिखने वाला नहीं था परंतु जैसे ही ध्वनि यन्त्र के द्वारा उसने अपनी आवाज सुनी वह आवाक रह गई। देहात से आई यह लड़की संसार के अनुभवों के उन सभी चरणों से नहीं गुजरी थी जो आम तौर पर महत्त्व और नजाकत का वह स्थान पाने से पहले होते हैं जिसमें उसे पहुंचा दिया गया था। (अर्थात् लड़की का व्यवहार उसके वर्तमान के अनुकूल नहीं था) उस दिन उसने जिस डर का अनुभव किया वह उससे कभी उबर न सकी। यह एक अच्छे अभिनय करियर का अंत या कानूनी सलाहकार ने जो कहानी विभाग का सदस्य भी था, मूर्खतापूर्ण तरीके से तथा दुःखद अंत कर दिया था।

[9] While every………………..go home.

जबकि विभाग का हर दूसरा सदस्य एक प्रकार का गणवेश (वर्दी) पहनता था – खादी की धोती और बेढंगे तरीके से मिली हुई ढीली-सी सफेद खादी की एक शर्ट-कानूनी सलाहकार पैन्ट और टाई पहनता था कभी-कभी ऐसा कोट जो कवच जैसा लगता था। प्रायः वह अकेला और असहाय दिखता या स्वप्न द्रष्टाओं की भीड़ में नीरस तर्क बाला आदमी- गाँधीवादी और खादीवादी लोगों के दल में निर्पेक्ष (व्यक्ति) बॉस के करीबी और लोगों की भांति उसे फिल्म बनाने की अनुमति दी गई और यद्यपि बहुत सारा माल और पेनकेक इसमें काम में लिया गया, फिल्म से कुछ ज्यादा लाभ नहीं हुआ। फिर एक दिन बॉस ने रुहानी विभाग बन्द कर दिया और शायद पूरे मानव इतिहास में यह मात्र उदाहरण था जहाँ एक वकील की नौकरी इसलिए छूट गई क्योंकि कवियों को घर जाने के लिए कह दिया गया था।

[10] Gemini studios………………….fothcoming.

जैमिनी स्टूडियोज एस.डी.एस. योगीहर (एक स्वतंत्रता सेनानी तथा एक राष्ट्रीय कवि) संगु सुब्रमण्यम्, कृष्ण शास्त्री और हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (एक कवि और नाटककार) जैसे कवियों का पसन्दीदा भ्रमण स्थल था। इसमें एक सुंदर भोजनालय था जिससे सारे दिन और रात को एक बहुत अच्छी कॉफी मिलती थी। ये वे दिन थे जब काँग्रेस का शासन मतलब पाबंदी होती थी और कॉफी पीते हुए मिलना बहुत सन्तोषप्रद मनोरंजन होता था। दो लिपिकों और ऑफिस व्याँय को छोड़कर हर आदमी खाली लगता था जो काव्य की पूर्व शर्त है। अर्थात कविता लिखने के लिए लेखक के पास खाली समय होना चाहिए। उनमें से अधिकतर खादी पहनते थे और गाँधीजी की पूजा करते थे परन्तु इससे आगे उन्हें किसी प्रकार के राजनीतिक विचारों से जरा भी सरोकार न रखते थे। स्वाभाविक रूप से वे सभी कम्युनिज्म शब्द के खिलाफ थे। एक कम्यूनिस्ट एक ईश्वरहीन व्यक्ति होता था। उसके बच्चे माता-पिता तथा पत्नी-पति एक दूसरे से प्यार नहीं करते। उसे अपने माता-पिता, या बच्चों की हत्या करके भी ग्लानि नहीं होती, वह हमेशा भोले और अज्ञानी लोगों के बीच अशान्ति एवं हिंसा उत्पन्न करने और फैलाने को तैयार रहता था। ऐसे विचार जो इस समय भी दक्षिण भारत में हर जगह फैले थे, वे स्वाभाविक रूप से जैमिनी स्टूडियोज के इन कवियों में अस्पष्ट रूप में फैले थे। इसका प्रमाण शीघ्र ही तैयार था अर्थात् शीघ्र ही मिल गया।

[11] When Frank………………..communism.

जब फ्रेंक बकमैन का लगभग 200 आदमियों का दल मॉरल रि-अममिन्ट-आर्मी 1952 में कभी मद्रास आया तो उन्हें भारत में जैमिनी स्टूडियोज से बेहतर गर्मजोशी से स्वागत करने वाला मेजबान कोई और नहीं मिल सका था। किसी ने इस दल को अन्तर्राष्ट्रीय सर्कस बताया। वे झूले पर अच्छा खेल नहीं दिखाते थे और पशुओं से उनका परिचय सिर्फ रात्रि के भोजन की मेज पर होता था। (अर्थात् वे पशुओं का माँस खाते थे।) इसके अलावा पशुओं के बारे में कुछ नहीं जानते थे। किन्तु वे दो नाटकों को अत्यंत प्रशिक्षित अन्दाज में प्रस्तुत करते थे। उनके नाटक ‘Jotham Valley’ और The Forgotten Factor के मद्रास में अनेक प्रदर्शन हुए और शहर के अन्य नागरिकों के साथ जैमिनी परिवार के छः सौ लोगों ने भी इस नाटक को बार-बार देखा। नाटकों का संदेश सीधी-सरल नैतिक शिक्षा होती थी किन्तु सेट और मंच सज्जा व पोशाकें अति उत्तम थी। मद्रास में तमिल नाटक मंडलियाँ बहुत ज्यादा प्रभावित थीं और कई वर्षों तक लगभग सारे तमिल नाटकों में खाली मंच, पीछे की तरफ सफेद पर्दा और बाँसुरी पर बजती धुन के साथ Jotham Valley की तर्ज पर सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य होता था। कई वर्ष बाद मुझे पता चला कि MRA अन्तर्राष्ट्रीय कम्युनिज्म (साम्यवाद) का एक विरोधी आन्दोलन था और मद्रास के मि० बासन जैसे बड़े आदमी उनके हाथों में खेल रहे थे। अर्थात उनके प्रभाव में आ गए थे तथापि मुझे ठीक-ठीक नहीं मालूम कि सचमुच ऐसा ही था क्योंकि इन बड़े लोगों के न बदलने वाले पक्ष और उनके काम वैसे ही रहे। MRA तथा अन्तर्राष्ट्रीय कम्यूनिज्म के होने न होने का कोई फर्क नहीं था।

[12] The staff………………..us knew.

जैमिनी स्टूडियोज के स्टाफ का समय कम से कम 20 देशों के भिन्न-भिन्न रंग के आकार के दो सौ लोगों का स्वागत करते हुए अच्छा गुजरा। श्रृंगार विभाग के मेक अप बाँय द्वारा श्रृंगार की मोटी परत चढ़ाये जाने की प्रतिक्षा करती भीड़ की भूमिका निभाने वाले लोगों के जमावड़े से यह बहुत अलग था।

कुछ ही महीनों बाद, मद्रास के बड़े लोगों के फोन बजे और एक बार फिर जैमिनी स्टूडियोज में एक और पर्यटक का स्वागत करने के लिए हमने पूरी स्टेज खाली कर दी। केवल इतना पता चला कि वह इंग्लैण्ड के कवि थे। जैमिनी का सीधा सत्त्वा स्टाफ जिनके बारे में जानता था या जिसके बारे में सुना था, वे वर्डस्वर्थ और टेनिसन और अधिक पढ़े लिखे लोग कीट्स, शैली तथा बेरॉन के बारे में जानते थे और एक या दो शायद इलियट नाम के किसी कवि के बारे में थोड़ा बहुत जानते थे। जैमिनी स्टूडियोज में आने वाला कवि कौन था? वह कवि नहीं है। “वह सम्पादक है यही कारण है बॉस उनका इतना स्वागत कर रहे हैं।” वासन तमिल की सुपरिचित साप्ताहिक आनन्दा विकेतन का संपादक भी था।

वासन मद्रास में जिन ब्रिटिश प्रकाशनों के नाम पता थे अर्थात् जिन्हें जैमिनी स्टूडियोज को लोग जानते थे, वह उनका संपादक नहीं था। क्योंकि द हिन्दू के प्रमुख लोग पहल कर रहे थे, इसलिए अंदाज यह था कि वह कवि किसी दैनिक समाचार पत्र का सम्पादक था किन्तु वह मैनचेस्टर गार्डियन अथवा लन्दन टाइम्स से नहीं था। हम सबमें सर्वाधिक जानकारी रखने वाले आदमी भी केवल इतना ही जानते थे।

[13] At last,………………..mystery.

अंत में दोपहर बाद लगभग चार बजे कवि (या फिर सम्पादक) आया। वह एक लंबा आदमी था, बिल्कुल अंग्रेज, बहुत गंभीर और सचमुच हम सबसे बहुत अधिक अपरिचित। शूटिंग स्टेज पर रसखे आधा दर्जन पंखों की तेज हवा को झेलते हुए बाँस ने एक लंबा भाषण पड़ा। यह स्पष्ट था कि वह इस कवि अथवा (संपादक) के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते थे। भाषण में सामान्य शब्द थे परन्तु जहाँ-तहाँ इसमें फ्रीडम ‘तथा डेमोक्रेसी’ जैसे शब्दों का मिर्च मसाला लगा था। फिर कवि बोले वे इससे ज्यादा-चकित और शान्त श्रोताओं को संबोधित नहीं कर सकते थे कोई नहीं जानता था कि वह किस बारे में बात कर रहे थे और उनकी बात को समझने के लिए किसी भी प्रयास को उनके बोलने की शैली (बोलने के लहजे) ने परास्त कर दिया तथा उनकी बात किसी को समझ नहीं आ रही थी। यह सब लगभग एक घण्टे चला, फिर कवि चले गये और पूरी कर्तव्य विमुड़ता में हम तितर-बितर हो गये हम क्या कर रहे हैं? एक अंग्रेज कवि का ऐसे फिल्म स्टूडियो में क्या काम है जो ऐसे सीधे सरल लोगों के लिए तमिल फिल्म बनाता है? ऐसे लोग जिनके जीवन में अंग्रेजी काव्य के प्रति रुचि जाग्रत करने की सम्भावना नहीं थी। कवि भी काफी परेशान लग रहा था क्योंकि उसने एक अंग्रेज कवि को उत्तेजना और कष्टों के बारे में अपने भाषण के बेतुकेपन को महसूस किया होगा। उसकी यात्रा एक अवर्णनीय रहस्य रही।

[14] The great………………….England.

हो सकता है है संसार के महान गद्य लेखक इसे स्वीकार न करें, लेकिन मेरा विचार दिनों-दिन मजबूत होता जा रहा है कि किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति का सच्चा काम गद्य लेखन नहीं है और ना ही हो सकता है यह धैर्यशील दृढ़ संकल्पित और लग्नशील, उबाऊ काम करने वाले व्यक्ति के लिए हैं जिनका हृदय इतना सिकुड़ा हो जिसे कुछ भी ना तोड़ सके अस्वीकृति की पर्चियों का उसके लिए कोई मतलब नहीं होता है। (अर्थात् सम्पादक से उसकी रचना को अस्वीकार किये जाने पर प्राप्त अस्वीकृति पत्र उसे परेशान नहीं करते हैं)। वह तुरंत गद्यांश की ताजा प्रति तैयार करने में जुट जाता है तथा लौटाने के लिए डाक टिकट के साथ उसे किसी दूसरे सम्पादक के पास भेजता है। ऐसे लोगों के लिए ‘द हिन्दु’ एक अखबार में एक महत्त्वहीन पृष्ठ के महत्त्वहीन कोने में छोटी सी घोषणा प्रकाशित की गई थी- ‘द एनकाउण्टर नामक’ अंग्रेजी पत्रिका ने लघुकथा प्रतियोगिता आयोजित की थी। वास्तव में, जैमिनी साहित्य प्रेमियों में ‘द एनकाउण्टर’ जानी मानी चीज नहीं थी। पाण्डुलिपि को इंग्लैण्ड भेजने में काफी डाक खर्चा करने से पहले मैं पत्रिका के बारे में जानना चाहता था।

[15] In those………………….his name.

उन दिनों ब्रिटिश का अखिल लाइबेरी के प्रवेश द्वार पर कोई लंबे-चौड़े सूचना पट नहीं हुआ करते थे जिससे आपको यह लगे कि आप निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं और वहाँ पर द एनकाउन्टर की प्रतियाँ विभिन्न अवस्था पर ताजगी के साथ, पाठकों द्वारा लगभग अनछुई पड़ी थी। जब मैंने सम्पादक का नाम पड़ा। मैंने अपने सिकुड़े हृदय में एक घंटी बजती हुई सुनी। यह वहीं कवि था जिसने जैमिनी स्टूडियोज का भ्रमण किया था मुझे लगा जैसे मुझे कोई पुराना बिहुद्धा भाई मिल गया हो और जब मैंने लिफाफा बंद किया और उसका पता लिखा तो मैं गा रहा था। मैंने महसूस किया कि वह भी इसी समय वही गीत गा रहा होगा – भारतीय फिल्म के पुराने बिछुड़े भाई पहली रील और अंतिम रील में गाये गये गीत को गाकर एक दूसरे को ढूँढ़ लेते हैं। स्टीफन स्पेन्डर। स्टीफन यही उसका नाम था।

[16] And years………………….that failed.

और वर्षों बाद जब मैं जैमिनी स्टूडियोज को छोड़ चुका था और मेरे पास समय बहुत था परन्तु बहुत धन नहीं था, कोई भी घटी हुई कीमत की चीज मेरा ध्यान खींच लेती थी। मद्रास माउन्ट रोड पोस्ट ऑफिस के सामने फुटपाथ पर पचास पैसे की एक के हिसाब से बिल्कुल नई किताबों का ढेर लगा हुआ था। वास्तव में वे एक ही पुस्तक की प्रतियाँ थी, सुंदर पेपर बैंक संस्मरण में अमेरिकी मूल से संबंधित। विशेष घटी कीमत वाला विद्यार्थियों का अंक रूस की क्रांति की पचासवीं वर्षगांठ वाला। मैंने पचास पैसे दिए और ‘The God that Failed’ पुस्तक की एक प्रति उठा ली। छः अलग-अलग विद्वानों ने छः अलग-अलग निबन्धों में ‘साम्यवाद’ में अपनी यात्रा और उनकी निराशाजनक वापसी का वर्णन किया था एन्ड्री गाइड (एक फ्रेंच लेखक) जो मानवतावादी तथा नैतिकतावादी थे तथा जिन्होंने 1947 में साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। रिचर्ड राइट (एक अमेरिकन लेखक) इग्नोजियो (सलोनियों, अर्थर को सलर, लुइस फिशर (महात्मा गाँधी की जीवनी लिखने वाले प्रसिद्ध लेखक) और स्टीफन स्पेन्डर (अंग्रेजी कवि और लेखक)। अचानक इस पुस्तक ने अत्यधिक महत्त्व ले लिया। स्टीफन स्पेन्डर कवि जो जैमिनी स्टूडियोज में आया था। एक क्षण में मुझे लगा कि मेरे दिमाग का अन्धेरा कक्ष धुँधले प्रकाश से जगमगा गया। जैमिनी स्टू‌डियोज में स्टीफन स्पेन्डर की प्रतिक्रिया अब रहस्य नहीं रही। जैमिनी स्टूडियोज़ के मालिक को स्टीफन स्पेन्डर की कविता से कुछ ज्यादा सरोकार नहीं रहा। परन्तु उसके गॉड दैट फेल्ड के साथ नहीं।

Jalandhar Paswan is pursuing Master's in Computer Applications at MMMUT Campus. He is Blogger & YouTuber by the choice and a tech-savvy by the habit.

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