देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत-रत्न से सम्मानित देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) एक सफल साहित्यकार, राजनीतिज्ञ एवं महान देशभक्त होने के साथ-साथ आधुनिक काल के कुशल लेखक थे। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। राजनीति के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी इनका योगदान सदैव वंदनीय रहेगा।
वे एक श्रेष्ठ विचारक व लेखक होने के साथ-साथ महान नेता भी थे। अपने लेखों एवं भाषणों के माध्यम से इन्होंने देश को गौरवान्वित किया। सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्न विषयों पर इनके द्वारा लिखे गए लेख हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। देश में अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण इन्हें राजेंद्र बाबू अथवा देशरत्न कहकर पुकारा जाता था।
खुलकर सीखें के आज के इस ब्लॉगपोस्ट के माध्यम से हम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा-शैली, और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में पढ़ेंगे।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
नाम | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
जन्म | 3 दिसंबर, 1884 ईस्वी |
जन्म-स्थान | जीरादेई, छपरा, बिहार |
पिता का नाम | श्री महादेव सहाय |
माता का नाम | श्रीमती कमलेश्वरी देवी |
पत्नी का नाम | राजवंशी देवी |
पेशा | अध्यापन, वकालत, और सम्पादन |
प्रसिद्धि | भारत के प्रथम राष्ट्रपति (26 जनवरी 1950 – 14 मई 1962) |
पुरस्कार | भारत रत्न (1963 ईस्वी) |
मृत्यु | 28 फरवरी, 1963 ईस्वी |
मृत्यु-स्थान | पटना, बिहार |
प्रमुख रचनाएं | चम्पारन में महात्मा गांधी, बापू के कदमों में, मेरी आत्मकथा, मेरी यूरोप यात्रा, शिक्षा और संस्कृति, भारतीय शिक्षा, गांधीजी की देन, साहित्य, संस्कृति का अध्ययन, खादी का अर्थशास्त्र |
विधाएं | भाषण, पत्रिका |
भाषा | सहज, सरल, सुबोध खड़ीबोली |
शैली | भावात्मक, विवेचनात्मक, साहित्यिक एवं भाषण शैली |
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय
Dr. Rajendra Prasad ka Jivan Parichay: देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म सन् 13 दिसंबर 1884 ईस्वी में बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था। इनको लोग प्यार से ‘राजेन बाबू’ कहते थे। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था जो संस्कृत और फारसी भाषा के विद्वान थे। तथा इनके माता का नाम कमलेश्वरी देवी था जो एक धर्मपरायण महिला थीं। इनका परिवार गाँव के सम्पन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में से एक था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके गाँव में हुई तथा प्रारंभ में इन्होंने फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। उस समय समाज में बाल-विवाह जैसी कुरीतियाँ व्याप्त थी जिसके कारण मात्र 12 वर्ष के अल्पायु में ही इनका विवाह राजवंशी देवी के साथ हो गया।
इन्होंने ‘कलकत्ता-विश्वविद्यालय’ से एम.ए. की परीक्षा ‘प्रथम श्रेणी’ में उत्तीर्ण की। एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् इन्होंने वकालत की पढ़ाई के लिए, कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया और सन् 1995 में कानून में मास्टर डिग्री में विशिष्टता पाने के लिए राजेंद्र प्रसाद को स्वर्ण पदक मिला। इसके बाद इन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। इन्होंने कुछ समय कोलकाता और पटना उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य किया।
शुरुआत से ही इनका झुकाव राष्ट्रसेवा की ओर था। सन् 1917 ई. में गांधी जी के आदर्शों और सिद्धान्तों से प्रभावित होकर इन्होंने चम्पारन के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और सन् 1920 ई. में वकालत छोड़कर पूर्णरूप से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े। इस दौरान इनको अनेक बार जेल की यातनाएँ भी झेलनी पड़ी।
इन्होंने विदेश जाकर भारत के पक्ष को विश्व के सम्मुख रखा। ये तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति तथा भारत के संविधान का निर्माण करने वाली सभा के सभापति चुने गये। राजनीतिक जीवन के अतिरिक्त बंगाल और बिहार में बाढ़ और भूकम्प के समय की गयी इनकी सामाजिक सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता।
‘सादा जीवन उच्च-विचार’ इनके जीवन का पूर्ण आदर्श था। इनकी प्रतिभा, कर्त्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और निष्पक्षता से प्रभावित होकर इनको भारत गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। इस पद को ये सन् 1952 से सन् 1962 ई. तक सुशोभित करते रहे। भारत सरकार ने इनकी महानताओं के सम्मान-स्वरूप देश की सर्वोच्च उपाधि ‘भारतरत्न‘ से सन् 1962 ई. में इनको अलंकृत किया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद आजीवन हिंदी साहित्य-सृजन तथा देशसेवा में संलग्न रहे। इन्होंने अपना अंतिम समय पटना के निकट सदाकत आश्रम में व्यतीत किया तथा यहीं पर 28 फरवरी सन् 1963 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का साहित्यिक परिचय
Dr. Rajendra Prasad ka Sahityik Parichay: डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद एक कुशल लेखक थे। सामाजिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक विषयों पर इनके लेख बराबर निकलते रहते थे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति पद को भी इन्होंने सुशोभित किया। “नागरी प्रचारिणी सभा” और “दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा” के माध्यम से हिन्दी को समृद्ध बनाने में योगदान देते रहे। इन्होंने ‘देश‘ नामक पत्रिका का सफलतापूर्वक सम्पादन किया।
शिक्षा, संस्कृति, समाज, राजनीति, जन-सेवा आदि विषयों पर इन्होंने अनेक प्रभावपूर्ण निबन्धों की रचना की। राष्ट्रीय भावना, जनसेवा एवं सर्वजन हिताय की भावना ने इनके साहित्य को विशेष रूप से प्रभावित किया है। इनकी रचनाओं में उद्धरणों एवं उदाहरणों की प्रचुरता है। इनकी रचनाओं में अत्यन्त प्रभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति देखने को मिलती है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति में अनेकता में एकता के दर्शन कराए हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा हिंदी साहित्य की पर्याप्त सेवा की है। डॉ.राजेंद्र प्रसाद ‘सादा जीवन और उच्च विचार‘ में विश्वास रखते थे, इसका परिचय इनकी रचनाओं से स्पष्ट होता है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ
Dr. Rajendra Prasad ki Pramukh Rachnaye: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शिक्षा एवं संस्कृति, भारतीय शिक्षा, राजनीति आदि विषयों को आधार मानकर साहित्य-सृजन किया। Rajendra Prasad ki Rachnaye अर्थात उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं:-
- चम्पारन में महात्मा गांधी
- बापू के कदमों में
- मेरी आत्मकथा
- मेरे यूरोप के अनुभव
- शिक्षा और संस्कृति
- भारतीय शिक्षा
- गांधीजी की देन
- साहित्य
- संस्कृति का अध्ययन
- खादी का अर्थशास्त्र
- इंडिया डिवाइडेड
- सत्याग्रह ऐट चंपारण
ये सभी इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त इनके भाषणों के भी कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा-शैली
Dr Rajendra Prasad ki Bhasha Shaili: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी रचनाओं में सहज, सरल, सुबोध खड़ीबोली भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने बिहारी, उर्दू, संस्कृत व अंग्रेजी के शब्दों का भी पर्याप्त मात्रा में प्रयोग किया है। इनकी भाषा व्यावहारिक है तथा इन्होंने आवश्यकतानुसार ग्रामीण कहावतों और ग्रामीण शब्दों का भी प्रयोग किया है।
इन्होंने अपनी शैली के रूप में विवेचनात्मक, भावात्मक, आत्मकथात्मक तथा साहित्यिक एवं भाषण शैली का प्रयोग किया है। इनकी आत्मकथात्मक शैली पर आधारित ‘मेरी आत्मकथा’ पर इन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक‘ से सम्मानित किया गया।