Lost Spring Class 12 Hindi Summary & Explanation

खुलकर सीखें के इस ब्लॉगपोस्ट Lost Spring Class 12 Hindi Summary & Explanation में हम Class 12 NCERT English Flamingo Prose Chapter 2 यानि Lost Spring Class 12 का सारांश और लाइन बाई लाइन करके हिन्दी व्याख्या करना सीखेंगे।

सबसे पहले Lost Spring Class 12 Hindi Summary के अंतर्गत आप Lost Spring चैप्टर का About the Author फिर About the Lesson को पढ़ेंगे और फिर इस चैप्टर का Summary पढ़ने के बाद आप इस पाठ के एक-एक लाइन का हिंदी अनुवाद भी इसी पेज पर पढ़ सकेंगे।

Lost Spring Class 12

Lost Spring का हिंदी अर्थ होगा – खोया हुआ बसंत। इस चैप्टर को एक प्रसिद्ध पत्रकार और संपादक अनीस जंग के द्वारा लिखा गया है। चलिए Anees Jung के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।

About the Author – Anees Jung

Anees Jung, born on 15 December 1944 in Rourkela, spent her early years in Hyderabad. She studied in Hyderabad and the United States. Coming from a family of writers, she pursued a career in writing and became a well-known journalist, editor, and columnist. Anees wrote several books, and her work often focuses on societal issues like poverty and the exploitation of children.

The lesson “Lost Spring” is taken from her book “Lost Spring: Stories of Stolen Childhood”, where she highlights the struggles of underprivileged children.

About the Author in Hindi

15 दिसंबर 1944 को राउरकेला में जन्मी अनीस जंग ने अपने शुरुआती साल हैदराबाद में बिताए। उन्होंने हैदराबाद और संयुक्त राज्य अमेरिका में पढ़ाई की। लेखकों के परिवार से आने के कारण, उन्होंने लेखन में अपना करियर बनाया और एक प्रसिद्ध पत्रकार, संपादक और स्तंभकार बन गईं। अनीस ने कई किताबें लिखीं और उनका काम अक्सर गरीबी और बच्चों के शोषण जैसे सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित होता है।

पाठ “लॉस्ट स्प्रिंग” उनकी पुस्तक “लॉस्ट स्प्रिंग: स्टोरीज़ ऑफ़ स्टोलन चाइल्डहुड” से लिया गया है, जहाँ उन्होंने वंचित बच्चों के संघर्षों पर प्रकाश डाला है।

About the Lesson

“Lost Spring” discusses the harsh realities of child labour and poverty. It is divided into two parts:
The story of Saheb: A boy from Dhaka who now lives in Seemapuri near Delhi, scrounging garbage for survival.
The story of Mukesh: A boy from Firozabad, trapped in the glass bangle industry, but dreaming of becoming a motor mechanic.
The lesson emphasizes how societal and economic conditions force children to give up their dreams and live a life of exploitation.

About the Lesson in Hindi

“लॉस्ट स्प्रिंग” बाल श्रम और गरीबी की कठोर वास्तविकताओं पर चर्चा करता है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है:
साहेब की कहानी: ढाका का एक लड़का जो अब दिल्ली के पास सीमापुरी में रहता है, जीवित रहने के लिए कचरा बीनता है।
मुकेश की कहानी: फिरोजाबाद का एक लड़का, जो कांच की चूड़ियों के उद्योग में फंस गया है, लेकिन मोटर मैकेनिक बनने का सपना देख रहा है।
पाठ इस बात पर जोर देता है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ बच्चों को अपने सपनों को त्यागने और शोषण का जीवन जीने के लिए मजबूर करती हैं।

Lost Spring Class 12 Summary

This chapter “Lost Spring” written by Anees Jung discusses the harsh realities of child labour and poverty. It is divided into two parts: the first one is- “Sometimes I Find a Rupee in the Garbage” which is the story of a Bangladeshi boy Saheb and the second is- “I Want to Drive a Car” which is the story of a Firozabadi boy Mukesh.

Part 1: “Sometimes I Find a Rupee in the Garbage.”
Saheb: A young ragpicker from Dhaka now lives in Seemapuri. His family migrated due to poverty and storms destroying their fields.
Life in Seemapuri: The place lacks basic facilities, and the residents survive by ragpicking. Garbage is like “gold” to them as it provides food and shelter.
Saheb’s Reality: He dreams of going to school but lacks opportunities. Later, he works at a tea stall, losing his carefree nature. Despite earning ₹800 and meals, he realizes he is no longer his own master.

Part 2: “I Want to Drive a Car.”
Mukesh: Lives in Firozabad, the hub of India’s bangle industry, where generations have worked in poor conditions.
Child Labour: Thousands of children work in dangerous furnaces, losing their health and eyesight. Laws against child labour exist but are rarely enforced.
Dreams and Struggles: Mukesh dreams of becoming a motor mechanic, breaking free from his family’s cycle of poverty and traditional work.

Lost Spring Summary in Hindi

अनीस जंग द्वारा लिखित इस अध्याय “खोया हुआ बसंत” में बाल श्रम और गरीबी की कठोर वास्तविकताओं पर चर्चा की गई है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है: पहला है- “कभी-कभी मुझे कूड़े में एक रुपया मिल जाता है” जो एक बांग्लादेशी लड़के साहेब की कहानी है और दूसरा है- “मैं कार चलाना चाहता हूँ” जो एक फिरोजाबादी लड़के मुकेश की कहानी है।

भाग 1: “कभी-कभी मुझे कूड़े में एक रुपया मिल जाता है।”
साहब: ढाका का एक युवा कूड़ा बीनने वाला अब सीमापुरी में रहता है। उसका परिवार गरीबी और तूफानों के कारण अपने खेतों को नष्ट करने के कारण पलायन कर गया।
सीमापुरी में जीवन: इस जगह पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, और निवासी कूड़ा बीनकर अपना जीवन यापन करते हैं। कूड़ा उनके लिए “सोने” जैसा है क्योंकि यह भोजन और आश्रय प्रदान करता है।
साहब की वास्तविकता: वह स्कूल जाने का सपना देखता है लेकिन उसे अवसर नहीं मिलते। बाद में, वह एक चाय की दुकान पर काम करता है, जिससे उसका लापरवाह स्वभाव खत्म हो जाता है। ₹800 और भोजन कमाने के बावजूद, उसे एहसास होता है कि वह अब अपना मालिक नहीं है।

भाग 2: “मैं कार चलाना चाहता हूँ।”
मुकेश: भारत के चूड़ी उद्योग के केंद्र फिरोजाबाद में रहता है, जहाँ पीढ़ियों ने खराब परिस्थितियों में काम किया है।
बाल श्रम: हज़ारों बच्चे खतरनाक भट्टियों में काम करते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य और दृष्टि चली जाती है। बाल श्रम के खिलाफ़ कानून मौजूद हैं, लेकिन शायद ही कभी लागू किए जाते हैं।
सपने और संघर्ष: मुकेश अपने परिवार की गरीबी और पारंपरिक काम के चक्र से मुक्त होकर मोटर मैकेनिक बनने का सपना देखता है।

QnA: Lost Spring Question Answer Up Board

Lost Spring Class 12 Explanation in Hindi

अब हम Class 12 NCERT English Flamingo Prose Chapter 2 यानी Lost Spring Class 12 Paragraph wise Explanation करना शुरू करते हैं।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-1

Sometimes………………………must sound.

“कभी-कभी कूड़े में मुझे एक रुपया मिल जाता है।”
“तुम यह क्यों करते हो?” मैं साहेब से पूछती हूँ जो मुझे हर सुबह मेरे पड़ोसी के कूड़ा फेंकने के स्थान पर धन माँगते या ढूंढते हुए मिलता है। साहेब ने अपना घर बहुत पहले छोड़ दिया। ढाका के हरे-भरे खेतों में स्थित अपने घर की उसे दूर-दूर तक कोई स्मृति नहीं है। उसकी माँ उसे बताती है कि बड़े-बड़े तूफान आते थे और उनके खेतों और घरों को बहा ले जाते थे। इसी कारण उन्होंने उस शहर को (ढाका को) छोड़ दिया और धन की तलाश में इस बड़े शहर में आ गए जहाँ वह अब रहता है।
“मेरे पास करने को इसके अलावा और कुछ नहीं है।” निगाह बचाते हुए वह बुदबुदाता है।
“स्कूल जाया करो।” मैंने बड़ी चतुराई के साथ कहा और तुरंत ही यह महसूस किया कि मेरी सलाह कितनी खोखली लगी होगी।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-2

“There is………………………answers simply”

“मेरे पड़ोस में कोई स्कूल नहीं है। जब कोई स्कूल बनायेंगे तब आऊँगा।”
“यदि मैं स्कूल शुरू करूँ तो क्या तुम आओगे?” मैं थोड़े मजाक भरे अंदाज में पूछती हूँ।

“हाँ,” वह खुलकर मुस्कुराते हुए कहता है। मैं कुछ ही दिन बाद देखती हूँ कि वह मेरे पास दौड़कर आता है, “क्या आपका स्कूल तैयार हो गया है?” जो मैं वास्तव में पूरा करना ही नहीं चाहती थी, ऐसा वायदा करने के कारण ग्लानि से भरी मैं कहती हूँ, “स्कूल बनाने में काफी समय लगता है। “किन्तु मेरे जैसे वायदे उसके फीके संसार के हर कोने में भरे पड़े हैं। उसे महीनों जानने के बाद, मैं उससे नाम पूछती हूँ। वह घोषणा करता है ‘साहेब-ए-आलम।’ वह नहीं जानता कि इसका (उसके नाम का) का क्या अर्थ है। अगर उसे इसका अर्थ- ‘संसार का मालिक’ पता लग जाये तो उसे इस नाम पर विश्वास करना मुश्किल हो जाये। अपने नाम के अर्थ से अनभिज्ञ वह अपने मित्रों के साथ गलियों में घूमता रहता है जो नंगे पैरों वाले लड़कों की ऐसी फौज है जो सुबह के पक्षियों की भाँति दिखाई पड़ते हैं और दोपहर में गायब हो जाते हैं। महीनों से मिलते रहने के कारण मैं उनमें से प्रत्येक को पहचानने लगी हूँ।

मैं उनमें से एक से पूछती हूँ, “तुमने चप्पले क्यों नहीं पहन रखी है?”
वह सीधा-सा उत्तर देता है, “मेरी माँ ने उन्हें ‘ताक या ताँड़ से नीचे नहीं उतारा।”

Lost Spring Hindi Explanation – Para-3

“Even if……………………..shoeless.

दूसरा जिसने बेमेल जूते पहन रखे हैं कहता है, “वह उतार भी दे तो वह उन्हें फेंक देगा।” जब मैं इस (बेमेल जूतों) पर टिप्पणी करती हूँ तो वह अपने पैरों को इधर-उधर घसीटता है और कुछ नहीं कहता है। एक तीसरा लड़का जिसके पास जीवन में कभी जूतें नहीं रहे कहता है, “मुझे जूते चाहिए।” देश-भर में घूमते हुए मैंने शहरों में व गाँव की सड़कों पर बच्च्चों को नंगे पैर घूमते हुए देखा है। यह पैसों की कमी के कारण नहीं है वरन् नंगे पैर रहना एक परंपरा है, यह नंगे पैर रहने के औचित्य को सिद्ध करने के लिए एक स्पष्टीकरण है। मैं हैरान हूँ कि क्या सतत् बनी रहने वाली गरीबी की दशा की व्याख्या के लिए यह एक बहाना नहीं है।

मुझे एक कहानी याद आती है जो उडिपि के एक आदमी ने एक बार मुझे सुनायी थी। जब वह लड़का था तब वह स्कूल जाते वक्त एक पुराने मंदिर के पास से गुजरा करता था जहाँ उसके पिता पुजारी थे। वह थोड़ी देर मंदिर पर ठहरता और एक जोड़ी जूते के लिए प्रार्थना करता था। तीस साल पश्चात् मैं उसके कस्बे और मंदिर गयी, जो अब उजाड़ के प्रभाव में डूबा था पिछवाड़े में, जहाँ नया पुजारी रहता था, लाल और सफेद प्लास्टिक की कुर्सियों थीं। सलेटी रंग के गणवेश में मोजे और जुरे पहने हुए एक छोटे लड़का हाँफता हुआ आया और अपना बस्ता फोल्डिंग पलंग पर पटक दिया। लड़के की ओर देखते हुए, मुझे वह प्रार्थना याद आई जो एक दूसरे लड़के ने उस समय देवी से की थी जब उसे अन्ततः एक जोड़ी जूते मिल गये थे, “मैं इन्हें कभी न खोऊँ।” देवी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी। अब पुजारी के पुत्र की तरह छोटे लड़कों ने जूते पहन रखे थे। परन्तु मेरे पड़ोस में कूड़ा-करकट बीनने वालों की तरह के अन्य बहुत से लड़के बिना जूतों के रहते हैं।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-4

My acquaintance………………………more.

नंगे पाँव कूड़ा बीनने वालों से मेरा परिचय मुझे सीमापुरी ले जाता है, एक स्थान जो दिल्ली की सीमा पर हैं लेकिन लाक्षणिक रूप से या फिर अन्य प्रकार से दिल्ली से मीलों दूर है। यहाँ रहने वाले गैर-कानूनी बशिन्दे हैं जो सन् 1971 में बांग्लादेश से आये थे। साहेब का परिवार उन्हीं में से एक है। सीमापुरी उस समय बीहड़ था। यह अभी भी है परन्तु अब यह खाली नहीं है। टिन और तिरपाल के नालीहीन और जलापूर्तिविहीन कच्चे घरों में दस हजार कूड़ा बीनने वाले रहते हैं। वे तीस वर्ष से भी ज्यादा समय से बिना पहचान के और बिना परमिट के रह रहे हैं किन्तु उनके पास राशन कार्ड है जिससे उनके नाम मतदाता सूची में शामिल हो जाते हैं और जिनसे वे अनाज खरीद पाते हैं। जीने के लिए पहचान की अपेक्षा भोजन ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।

“अगर दिन के अंत में हम अपने परिवार को भोजन दे सके और बिना पेट दर्द के सो सकें तो, हम उन खेतों की अपेक्षा यहाँ रहना ज्यादा पसंद करेंगे जिन्होंने हमको कोई अनाज नहीं दिया।” ऐसी फटी हुई साड़ियाँ पहने महिलाओं का एक समूह कहता है जब मैं उनसे पूछती हूँ कि उन्होंने अपने हरे-भरे खेतों और नदियों के सुन्दर देश को क्यों छोड़ दिया। उन्हें जहाँ भी भोजन मिल जाता है, वहीं वे अपने तम्बू गाड़ लेते हैं जो उनके अस्थाई घर बन जाते हैं। बच्चे इन्हीं में तो बड़े होते हैं और उनके अस्तित्व के साझेदार बनते हैं और सीमापुरी में उत्तरजीविता का अर्थ होता है – कूड़ा बीनना। वर्षों की अवधि में इसने एक ललित कला का रूप ले लिया है। कूड़ा उनके लिए सोना या धन संपत्ति है। यह उनकी रोज की रोटी है, उनके सिरों पर छत है भले ही यह एक टपकती हुई छत क्यों न हो किंतु एक बच्चे के लिए यह छत इससे भी कहीं ज्यादा है।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-5

“I sometimes………………………his reach.

“कभी-कभी मुझे एक रुपया मिल जाता है, यहाँ तक कि दस रुपये का नोट भी कभी-कभी मिल जाता है” साहेब कहता है, उसकी आँखें चमक उठती है। जब कूड़े में आपको एक चाँदी का सिक्का मिल सकता है तो आप ढूँढना बन्द नहीं करते क्योंकि ज्यादे पाने की आशा बनी रहती है। ऐसा लगता है कि बच्चों के लिए कूड़े का अर्थ उनके माता-पिता के लिए जो अर्थ इसका (कूड़े का) होता है उससे भिन्न होता है। बच्चों के लिए यह आश्चर्य में लिपटी चीज होती है और बड़े-बूढ़े लोगों के लिए (यह कूड़ा) जिन्दा रहने का साधन होता है।

सर्दी की एक सुबह मैं साहेब को पास के क्लब के बाड़ लगे दरवाजे के नजदीक खड़े हुए देखती हूँ, जहाँ से वह सफेद वेशभूषा पहने दो युवकों को टेनिस खेलते हुए ध्यानपूर्वक देख रहा है। “मुझे यह खेल पसंद है।” वह गुनगुनाता है, और इस बाड़ के पीछे से खड़ा होकर देखकर ही संतुष्ट है। “जब कोई आसपास नहीं होता है तो मैं अंदर चला जाता हूँ।” वह स्वीकार करता है। “द्वारपाल मुझे झूले पर झूलने देता है।”

साहेब ने भी टेनिस खेलने वाले जूते पहन रखे हैं जो उसकी रंग उड़ी शर्ट और नेकर पर विचित्र लग रहे हैं। “किसी ने ये मुझे दिये थे” स्पष्टीकरण के ढंग से वह कहता है। यह तथ्य कि ये किसी धनी लड़के के त्यागे हुए जूते हैं, जिसने शायद उनमें से एक में छेद होने के कारण इन्हें पहनने से इन्कार कर दिया, उसे परेशान नहीं करता है। ऐसे किसी व्यक्ति के लिए जो नंगे पैर घूमा है, छेद वाले जूते भी सपने के सच होने से कम नहीं है। परन्तु वह खेल जिसे वह इतने ध्यानपूर्वक देख रहा है, उसकी पहुँच से बाहर है।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-6

This morning………………………it seems.

आज सुबह साहेब दूध की दुकान पर जा रहा है। उसके हाथ में स्टील का एक कनस्तर है। “मैं इस सड़क पर आगे एक चाय की दुकान में काम करता हूँ”, दूर इशारा करते हुए वह कहता है। “मुझे 800 रुपये और सभी वक्त का भोजन मिलता हैं।” “क्या उसे काम पसंद है?” मैं पूछती हूँ। मैं देखती हूँ उसके चेहरे की निश्चिन्तता, बेफ्रिकी या स्वतंत्रता का भाव खो जाता हैं। स्टील का कनस्तर प्लास्टिक के उस बैले से कहीं ज्यादा भारी लगता है जिसे वह बड़े आराम से अपने कंधे पर ले जाया करता था। थैला उसका था। कनस्तर उस आदमी का है जो चाय की दुकान का मालिक है। साहेब अब अपना स्वयं का मालिक नहीं रहा है।

“मैं कार चलाना चाहता हूँ।”
मुकेश अपना स्वयं का मालिक बने रहने पर जोर देता है। “मैं मोटर मैकेनिक बनूँगा।” वह घोषणा करता है। “क्या तुम कारों के बारे में कुछ जानते हो?” मैं पूछती हूँ।
“मैं कार चलाना सीख लूंगा।” सीधा मेरी आँखों में देखते हुए वह कहता है। उसका सपना उसके अपनी चूड़ियों के लिए मशहूर कस्बे फिरोजाबाद की गलियों की धूल के बीच एक मरीचिका-सा प्रतीत होता है। फिरोजाबाद का हर दूसरा परिवार चूड़ी बनाने में लगा है। यह भारत को काँच की आकृति देने वाले उद्योग का केन्द्र है जहाँ परिवारों ने भट्टियों के आस-पास काम करते हुए काँच तोड़ते हुए लगता है देश की सभी औरतों के लिए चूड़ियाँ बनाते हुए पीढ़ियाँ बिता दी हैं।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-7

Mukesh’s………………………bangles.

मुकेश का परिवार उन्हीं में से एक है। उनमें से कोई नहीं जानता कि उन जैसे बच्चों का बिना हवा-प्रकाश की अंधेरी गन्दी कोठरियों में ऊँचे तापमान वाली काँच की भट्टियों पर काम करना गैरकानूनी है; और यह कि यदि कानून लागू कर दिया जाये तो उसे और उन सभी 20,000 बच्चों को गर्म भट्टियों से अलग कर दिया जायेगा जहाँ वे अपने दिन के घण्टों में घोर परिश्रम करते हैं और प्रायः अपनी आँखों की चमक खो बैठते हैं। मुकेश जब मुझे अपने घर ले जाने की पेशकश करता है। तो उसकी आँखें चमक उठती हैं, वह गर्व से कहता है कि उसका घर फिर से बनाया जा रहा है। हम कूड़े से अटी पड़ी बदबूदार गलियों से गुजरते हैं, ऐसे गन्दे घरों के करीब से गुजरते हैं जो टूटी दीवारों, डगमगाते दरवाजों और बिना खिड़कियों के हैं और जिनमें मनुष्यों और जानवरों के परिवार आदिम-युग की भाँति साथ-साथ रह रहे हैं।

वह ऐसे ही एक घर के दरवाजे पर रूक जाता है लोहे के एक डगमगाते दरवाजे को जोर से लात मारता है और उसे खोल देता है। हम एक अधबनी झोपड़ी में प्रवेश करते हैं। उसकी सूखी घास के छप्पर वाले एक हिस्से में एक चूल्हा है जिस पर एक बड़ा बर्तन रखा है जिसमें पालक की पत्तियाँ खदरबदर करते उबल रही हैं। जमीन पर एल्यूमिनियम की प्लेटों में कटी हुई सब्जियों हैं। एक कमजोर युवती पूरे परिवार के लिए शाम का भोजन बना रही है। धुओं-भरी आँखों से वह मुस्कुराती है। वह मुकेश के बड़े भाई की पत्नी है। उम्र में उससे ज्यादा बड़ी नहीं है (परन्तु) वह बहू के रूप में उसे आदर मिलने लगा है, घर की बहू के रूप में पहले ही उस पर तीन व्यक्तियों – उसका पति, मुकेश और उनके पिता की जिम्मेदारी है।

जब बूढ़ा आदमी प्रवेश करता है वह धीरे से टूटी दीवार के पीछे सरक जाती है और अपना घूँघट अपने चेहरे पर सरका लेती है जैसी कि प्रथा है, पुत्र-वधुओं को पुरुष बुजुर्गों के सामने अपने चेहरे पर घूंघट जरूर डाल लेना चाहिए। यहाँ, बुजुर्ग एक अत्यन्त निर्धन चूड़ी बनाने वाला है। पहले एक दर्जी के रूप में और फिर एक चूड़ी बनाने वाले के रूप में वर्षों के कठोर परिश्रम के बावजूद भी वह अपने घर का नवीनीकरण करवाने में (और) अपने दो पुत्रों को स्कूल भेजने में असफल रहा है। वह उन्हें वहीं सिखा पाया है जो वह जानता है – चूड़ी बनाने की कला।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-8

It is………………………adults.

“यह इसका कर्म, उसका भाग्य है,” मुकेश की दादी कहती है जिसने चूड़ियों के काँच की पॉलिश की गर्द से अपने पति को अन्धे होते देखा है। “क्या कभी ईश्वर द्वारा प्रदत्त देने वंश परंपरा तोड़ी जा सकती है?” उसका मतलब है चूड़ी बनाने बाले की जाति में पैदा होकर, उन्होंने चूड़ियों के अलावा और कुछ नहीं देखा है – घर में, आँगन में, हर दूसरे घर में, हर दूसरे आँगन में, फिरोजाबाद की हर गली में। मालाओं के रूप में चूड़ियों के गुच्छे या बन्डल धूप-सी सुनहरी, धान जैसी हरी, गहरी चमकीली नीली, बैंगनी, गुलाबी, इन्द्रधनुष के सात रंगों से बनने वाले हर रंग की अस्त-व्यस्त आँगनों में ढेरों में पड़ी रहती है – तथा इनको चार पहियों वाली हथगाड़ियों पर लादकर जवान आदमी झोपड़ियों के कस्बे की तंग गलियों में होकर धकेलते हैं और अंधेरी झोपड़पट्टियों में, टिमटिमाते तेल के दीपको की लौ की पंक्तियों के आगे लड़के और लड़किर्यां अपने माता-पिता के साथ रंगीन काँच के टुकड़ों को चूड़ियों के वृत्ताकार घेरे पर जोड़ते हुए बैठे रहते हैं। उनकी आँखें बाहर के प्रकाश की अपेक्षी अँधेरे से ज्यादा समायोजित हैं। यही कारण है कि प्रौढ़ होने से पहले ही वे अपनी दृष्टि खो बैठते हैं।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-9

Savita………………………live in.”

एक छोटी लड़की सविता भद्दी गुलाबी पोशाक पहने एक बूढ़ी औरत के पास बैठकर काँच के टुकड़ों को जोड़ रही है। जब उसके हाथ किसी मशीन के चिमटे की भाँति यन्त्रवत् चलते हैं तो मैं सोचती हूँ कि क्या वह उन चूड़ियों की पवित्रता को जानती है जिन्हें बनाने में वह मदद कर रही है। ये भारतीय स्त्री के सुहाग का प्रतीक है। यह बात उस दिन अचानक उसकी समझ में आ जायेगी जब उसका सिर लाल घूँघट से ढक दिया जायेगा, उसके हाथों में मेहदी लगा दी जायेगी और लाल चूड़ियों को उसकी कलाईयों में पहना दी जायेंगी। तब वह एक दुल्हन बन जायेगी।

उसकी बगल वाली बूढ़ी औरत की तरह जो बहुत वर्ष पहले एक दुल्हन बन गई थी। आज भी उसकी कलाई में चूड़ियाँ हैं किंतु उसकी आँखों में कोई चमक नहीं है। “एक वक्त सेरभर खाना भी नहीं खाया।” वह ऐसी आवाज में कहती है जिसका आनंद समाप्त हो गया है। उसने अपने पूरे जीवन काल में एक बार भी भरपेट भोजन का आनंद नहीं उठाया है – यही मिला है उसे! लहराती दाढ़ी वाला बूढ़ा, उसका पति कहता है, “मैं चूड़ियों के अलावा कुछ भी नहीं जानता। मैं परिवार के रहने के लिए सिर्फ एक मकान बना पाया हूँ।”

Lost Spring Hindi Explanation – Para-10

Hearing………………………to dream.

उसकी बात सुनकर कोई भी सोचता है कि क्या उसने वह हासिल कर लिया है जो बहुत लोगों ने पूरे जीवन में हासिल नहीं किया है। उसके सिर पर एक छत तो है। चूड़ियाँ बनाने के काम को जारी रखने के अलावा कुछ भी करने के लिए पैसा न होने और खाने के लिए भी पर्याप्त न होने के दुःख की कराहट हर घर में गूंजती है। युवा लोग अपने बुजुर्गों के दर्द को ही प्रतिध्वनित करते हैं। ऐसा लगता है फिरोजाबाद में समय के साथ कुछ नहीं बदला है। चेतना को शून्य कर देने वाले वर्षों के परिश्रम ने पहल करने और सपने देखने की क्षमता को मार दिया गया है।

“(आप) स्वयं की एक सहकारी समिति क्यों नहीं बनाते हो?” मैं युवकों के एक समूह से पूछती हूँ जो ऐसे मध्यस्थों के कुचक्र में पड़ गये हैं जिन्होंने उनके पिताओं और पूर्वजों को जाल में फंसाया था। “हम संगठित हो भी जायें तो भी किसी गैर-कानूनी काम के आरोप में पुलिस द्वारा हम ही न्यायालय में घसीटे जायेंगे, पीटे जायेंगे और जेल में डाल दिये जाएँगे,” वे कहते हैं। उनमें कोई नेता नहीं है, कोई ऐसा (व्यक्ति) नहीं है जो उन्हें अलग ढंग से देखने में मदद कर सके। उनके पिता उतने ही थके हुए हैं जितने वे (स्वयं) हैं। वे अनवरत कुण्डलीनुमा (चक्र के समान बात) बोलते हैं जो गरीबी से उदासीनता, उदासीनता से लालच और लालच से अन्याय तक पहुँच जाती है।

Lost Spring Hindi Explanation – Para-11

Listening………………………Firozabad.

उनकी बात सुनकर मुझे दो अलग-अलग संसार दिखाई देते हैं – एक तो ऐसे परिवार का जो गरीबी के जाल में फैसा है और अपनी जन्म की जाति के कलंक से दबा हुआ है और दूसरा साहूकारों, विचौलियों, पुलिस वालों, कानून को लागू करने वालों, नौकरशाहों और राजनेताओं का कुचक्र है। दोनों ने मिलकर बच्चे के ऊपर ऐसा बोझ लाद दिया है जिसे वह उतार नहीं सकता है। अहसास होने से पहले ही वह इसे उतने ही स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर लेता है जितने स्वाभाविक रूप से उसके पिता ने किया था। कुछ हटकर करने का अर्थ होगा- चुनौती देना और चुनौती देना उसकी परवरिश का अंग नहीं है। जब मुझे मुकेश में इसकी झलक दिखाई देती तो मुझे खुशी होती है।

“में मोटर सुधारने वाला मिस्त्री बनना चाहता हूँ”, वह दुहराता है। वह किसी गैरिज में जायेगा और सीखेगा। परन्तु गैरिज उसके घर से बहुत दूर है। “मैं पैदल जाऊँगा।” वह जोर देकर कहता है। “क्या तुम हवाई जहाज उड़ाने का सपना भी देखते हो?” वह यकायक चुप हो जाता है। “नहीं” वह जमीन की ओर घूरते हुए कहता है, उसकी छोटी सी बुदबुदाहट में एक शर्मिन्दगी का भाव है जो अभी तक पश्चाताप में नहीं बदली है। वह उन कारों के सपने देखने से संतुष्ट है जिन्हें वह अपने कस्बे की गलियों में तेजी से दौड़ते हुए देखता है। मुश्किल से ही कभी वायुयान फिरोजाबाद के ऊपर से उड़ते हैं।

Jalandhar Paswan is pursuing Master's in Computer Applications at MMMUT Campus. He is Blogger & YouTuber by the choice and a tech-savvy by the habit.

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