पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (Padumlal Punnalal Bakshi) द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में से एक रहे हैं। छत्तीसगढ़ के जबलपुर के एक छोटे से कस्बे खैरागढ़ में जन्मे बख्शीजी को विशेषकर उनके लिलित निबंधों के लिए याद किया जाता है। हालाँकि, बख्शी जी एक मूर्धन्य निबंधकार, श्रेष्ठ आलोचक, कहानीकार और महान् कवि भी थे।
खुलकर सीखें के आज के इस ब्लॉगपोस्ट के माध्यम से हम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा-शैली, और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में पढ़ेंगे।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
नाम | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी |
जन्म | 27 मई, 1894 ईस्वी |
जन्म-स्थान | खैरागढ़, जबलपुर, छत्तीसगढ़ |
पिता का नाम | श्री पुन्नालाल बख्शी |
माता का नाम | श्रीमती मनोरमा देवी |
पेशा | अध्यापक, लेखक, पत्रकार |
मृत्यु | 27 दिसम्बर, 1971 ईस्वी |
मृत्यु-स्थान | रायपुर, छतीसगढ़ |
प्रमुख रचनाएं | कुछ बिखरे पन्ने, मेरा देश, उन्मुक्ति का बंधन, झलमला, अंजली, विश्व साहित्य, प्रदीप, समस्या, जिन्हें नहीं भूलूँगा, अंतिम अध्याय |
विधाएं | आलोचना, निबंध, कहानी, उपन्यास, काव्य |
भाषा | शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली |
शैली | समीक्षात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैली |
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय
Padumlal Punnalal Bakshi ka Jivan Parichay: द्विवेदी-युग के प्रमुख साहित्यकारों में से एक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म 27 मई, 1894 ईस्वी में जबलपुर के एक छोटे से कस्बे खैरागढ़ में हुआ था। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी तथा श्री बाबा उमराव बख्शी साहित्य-प्रेमी और कवि थे। इनकी माता मनोरमा देवी को भी साहित्य से अत्यंत प्रेम था।
परिवार के साहित्यिक वातावरण के प्रभाव के कारण ये विद्यार्थ-जीवन से ही कविताएँ रचने लगे थे। बी0 ए0 पास करते ही इन्होंने “सरस्वती” नामक पत्रिका में अपनी स्चनाएँ प्रकाशित कराना शुरू किया। बाद में इनकी रचनाएं “सरस्वती” के अतिरिक्त अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने लगीं।
इनकी कविताएँ स्वच्छन्दतावादी थीं, जिन पर अंग्रेजी कवि वर्ड्सवर्थ का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। बख्शीजी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार आलोचना और निबन्ध-लेखन है। साहित्य का यह महान् साधक 27 दिसम्बर, 1971 ईस्वी में परलोकवासी हो गया।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का साहित्यिक परिचय
Padumlal Punnalal Bakshi ka Sahityik Parichay: श्री बख्शी जी को द्विवेदी-युग के प्रमुख साहित्यकारों में गिना जाता है। ये विशेषकर अपने ललित निबन्धों के लिए याद किये जाते हैं। बख्शीजी एक विशेष शैलीकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। इन्होंने साहित्य, संस्कृति, धर्म, समाज और जीवन जैसे विषयों पर उच्चकोटि के निबन्ध लिखे हैं।
कहीं शिष्टता तो कहीं हस्यात्मक व्यंग्य के कारण इनके निबन्ध और अधिक रुचिकर हो जाते हैं। बख्शीजी ने 1920 ई0 से 1927 ई0 तक बड़ी कुशलता से “सरस्वती” पत्रिका का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक इन्होंने “छाया” नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन बड़ी कुशलता से किया।
इन्होंने स्वतन्त्रतावादी काव्य एवं समीक्षात्मक कृतियों का भी रचना किया। इनके द्वारा सृजित निबन्धों, अनुवादों, कहानियों, कविताओं, और आलोचनाओं में इनके व्यापक दृष्टिकोण और गहन अध्ययन की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा 1949 ईस्वी में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की प्रमुख रचनाएँ
Padumlal Punnalal Bakshi ki Pramukh Rachnaye: बख्शीजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। ये महान् आलोचक, उपन्यासकार, कुशल कहानीकार और श्रेष्ठ निबन्धकार थे। उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
- प्रबन्ध पारिजात
- पंचपात्र
- पद्मवन
- मकरन्द-बिन्दु
- कुछ बिखरे पन्ने
- मेरा देश
- अन्नपूर्णा का अनुवाद
- उन्मुक्ति का बंधन
- झलमला
- अंजली
- शतदल
- अश्रुदल
- पंच-पात्र
- विश्व साहित्य
- हिन्दी साहित्य विमर्श
- साहित्य शिक्षा
- हिन्दी कहानी साहित्य
- विश्व साहित्य
- प्रदीप
- समस्या
- समस्या और समाधान
- पंचपात्र
- पंचरात्र
- नवरात्र
- यदि मैं लिखता
- कथाचक्र
- भोला
- वे दिन
- मेरी अपनी कथा
- जिन्हें नहीं भूलूँगा
- अंतिम अध्याय
(1) निबन्ध-संग्रह: ‘प्रबन्ध पारिजात’, ‘पंचपात्र’, ‘पद्मवन’, ‘मकरन्द बिन्दु’, ‘कुछ बिखरे पन्ने’, ‘मेरा देश’ आदि।
(2) कहानी-संग्रह: ‘झलमला’, ‘अज्जलि’।
(3) आलोचना: ‘विश्व साहित्य’, ‘हिन्दी साहित्य विमर्श’, ‘साहित्य शिक्षा’, ‘हिन्दी उपन्यास साहित्य’, ‘हिन्दी कहानी साहित्य’, ‘विश्व साहित्य’, ‘प्रदीप’ (प्राचीन तथा अर्वाचीन कविताओं का आलोचनात्मक अध्ययन), ‘समस्या’, ‘समस्या और समाधान’, ‘पंचपात्र’, ‘पंचरात्र’, ‘नवरात्र’, ‘यदि मैं लिखता’।
(4) नाटक: ‘अन्नपूर्णा का अनुवाद’ (मौरिस मैटरलिंक के नाटक ‘सिस्टर बीट्रि’ का अनुवाद), ‘उन्मुक्ति का बंधन’ (मौरिस मैटरलिंक के नाटक ‘दी यूजलेस डेलिवरेन्स’ का अनुवाद)।
(5) काव्य-संग्रह: ‘शतदल’, ‘अश्रुदल’, ‘पंच-पात्र’।
(6) उपन्यास: ‘कथाचक्र’, ‘भोला’ (बाल उपन्यास), ‘वे दिन’ (बाल उपन्यास)।
(7) आत्मकथा-संस्मरण: ‘मेरी अपनी कथा’, ‘जिन्हें नहीं भूलूँगा’, ‘अंतिम अध्याय’।
(8) साहित्य समग्र: ‘बख्शी ग्रन्थावली’ (आठ खण्डों में)।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की भाषा-शैली
Padumlal Punnalal Bakshi ki Bhasha Shaili: बख्शीजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है। भाषा में संस्कृत शब्दावली का अधिक प्रयोग मिलता है। और साथ ही उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इनकी भाषा में विशेष प्रकार की स्वच्छन्द गति के दर्शन होते हैं।
इनकी शैली गम्भीर, प्रभावोत्पादक, स्वाभाविक और स्पष्ट है। इन्होंने अपने लेखन में समीक्षात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक, व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया है।