Journey to the end of the Earth Summary & Explanation

खुलकर सीखें के इस ब्लॉगपोस्ट Journey to the end of the Earth Summary & Explanation में आप Class 12 NCERT English Vistas Chapter 3 यानि Journey to the end of the Earth Class 12 का सारांश और लाइन बाई लाइन करके हिन्दी व्याख्या करना सीखेंगे।

सबसे पहले आप इस चैप्टर यानि Journey to the end of the Earth के बारे में पढ़ते हुए लेखक के बारे में जानेंगे और फिर इस चैप्टर का Summary पढ़ने के बाद आप इस पाठ के एक-एक लाइन का हिंदी अनुवाद भी इसी पेज पर पढ़ सकेंगे।

About the Lesson – Journey to the end of the Earth

“Journey to the End of the Earth” is a travelogue by Tishani Doshi, where she narrates her journey to Antarctica aboard a Russian research vessel, Akademik Shokalskiy. The lesson highlights the significance of Antarctica in understanding Earth’s geological past, present, and future. It emphasizes climate change, environmental concerns, and the impact of human activities on nature. The author also discusses the Students on Ice program, which aims to educate young students about environmental conservation.

About the Lesson in Hindi

“पृथ्वी के अंत तक की यात्रा” तिशानी दोशी द्वारा लिखा गया एक यात्रा वृत्तांत है, जिसमें वह रूसी शोध पोत, अकादमिक शोकाल्स्की पर सवार होकर अंटार्कटिका की अपनी यात्रा का वर्णन करती है। पाठ में पृथ्वी के भूवैज्ञानिक अतीत, वर्तमान और भविष्य को समझने में अंटार्कटिका के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। यह जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और प्रकृति पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव पर जोर देता है। लेखक ने स्टूडेंट्स ऑन आइस कार्यक्रम पर भी चर्चा की है, जिसका उद्देश्य युवा छात्रों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में शिक्षित करना है।


About the Author – Tishani Dosi

Tishani Doshi is an Indian poet, journalist, and dancer. Born in 1975 in Chennai, she has published several books of poetry and prose. She is known for her deep environmental awareness and vivid descriptions of nature. Her works often reflect themes of identity, travel, and the human connection with the natural world.

About the Author in Hindi

तिशानी दोशी एक भारतीय कवयित्री, पत्रकार और नर्तकी हैं। 1975 में चेन्नई में जन्मी, उन्होंने कविता और गद्य की कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वह अपनी गहरी पर्यावरण जागरूकता और प्रकृति के विशद वर्णन के लिए जानी जाती हैं। उनके काम अक्सर पहचान, यात्रा और प्राकृतिक दुनिया के साथ मानवीय संबंध के विषयों को दर्शाते हैं।


Summary of Journey to the End of the Earth

“Journey to the End of the Earth” by Tishani Doshi narrates her experience of traveling to Antarctica as part of the Students on Ice program. The journey helps her understand climate change, geological history, and environmental conservation.

She describes how 650 million years ago, India and Antarctica were part of Gondwana, a supercontinent that later broke apart. She observes how human activities have increased global warming, threatening Antarctica’s fragile ecosystem.

The lesson highlights how small environmental changes can lead to huge consequences, as seen with phytoplankton, which sustain marine life. The author’s experience of walking on the frozen ocean reinforces her realization that everything in nature is interconnected. She concludes that protecting the environment is crucial for the survival of future generations.

Hindi Summary of Journey to the end of the Earth

तिशानी दोशी द्वारा लिखित “जर्नी टू द एंड ऑफ द अर्थ” में स्टूडेंट्स ऑन आइस प्रोग्राम के हिस्से के रूप में अंटार्कटिका की यात्रा के अपने अनुभव को बताया गया है। यह यात्रा उसे जलवायु परिवर्तन, भूवैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरण संरक्षण को समझने में मदद करती है।

वह बताती हैं कि कैसे 650 मिलियन साल पहले, भारत और अंटार्कटिका गोंडवाना का हिस्सा थे, जो एक सुपरकॉन्टिनेंट था जो बाद में अलग हो गया। वह देखती है कि कैसे मानवीय गतिविधियों ने ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाया है, जिससे अंटार्कटिका का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है।

यह पाठ इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे छोटे पर्यावरणीय परिवर्तन बड़े परिणाम पैदा कर सकते हैं, जैसा कि फाइटोप्लांकटन के साथ देखा गया है, जो समुद्री जीवन को बनाए रखता है। जमे हुए समुद्र पर चलने के लेखक के अनुभव ने उसके इस अहसास को पुष्ट किया कि प्रकृति में सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है। वह निष्कर्ष निकालती है कि पर्यावरण की रक्षा करना भविष्य की पीढ़ियों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।


Journey to the End of the Earth Summary in English

“Journey to the End of the Earth” is a travelogue by Tishani Doshi, describing her journey to Antarctica as part of the Students on Ice program. The program, led by Geoff Green, takes high school students to Antarctica to help them understand climate change and environmental conservation.

The author starts her journey from Chennai (Madras), India, and after crossing nine time zones, six checkpoints, and three large water bodies, she reaches the world’s coldest, driest, and windiest continent—Antarctica. She experiences a sense of awe and relief upon seeing the vast white landscape and uninterrupted blue horizon.

The lesson provides insights into the geological history of Antarctica. Around 650 million years ago, India and Antarctica were part of a supercontinent called Gondwana. Over time, the landmass broke apart due to tectonic movements, forming the continents as we know them today. Antarctica, once a warm region filled with forests and wildlife, became an icy desert.

The author highlights how human civilization has existed for only 12,000 years, yet in this short time, we have significantly impacted the environment. The burning of fossil fuels has led to global warming, which threatens Antarctica’s fragile ecosystem. The continent’s ice sheets store ancient carbon records, which help scientists understand climate changes over the past half a million years.

Antarctica serves as the perfect place to study how small environmental changes can have large-scale effects. The example of phytoplankton, tiny sea plants that form the base of the ocean’s food chain, is given. Any damage to them due to ozone layer depletion would disturb the entire ecosystem.

One of the most memorable experiences for the author was walking on the frozen ocean. Beneath a meter-thick ice sheet, there was 180 meters of salt water, reminding her of the delicate balance in nature. The lesson ends with a thought-provoking question: Will human activities change Antarctica’s climate once again, making it warm like it was millions of years ago? The author realizes that everything is interconnected and emphasizes the importance of protecting the environment for future generations.

Journey to the End of the Earth Summary in Hindi

“पृथ्वी के अंत तक की यात्रा” तिशानी दोशी द्वारा लिखा गया एक यात्रा वृत्तांत है, जिसमें स्टूडेंट्स ऑन आइस कार्यक्रम के तहत अंटार्कटिका की अपनी यात्रा का वर्णन किया गया है। ज्योफ ग्रीन के नेतृत्व में यह कार्यक्रम हाई स्कूल के छात्रों को अंटार्कटिका ले जाता है, ताकि उन्हें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण को समझने में मदद मिल सके।

लेखिका अपनी यात्रा चेन्नई (मद्रास), भारत से शुरू करती है, और नौ समय क्षेत्रों, छह चौकियों और तीन बड़े जल निकायों को पार करने के बाद, वह दुनिया के सबसे ठंडे, सबसे शुष्क और सबसे हवादार महाद्वीप-अंटार्कटिका पहुँचती है। विशाल सफेद परिदृश्य और निर्बाध नीले क्षितिज को देखकर उसे विस्मय और राहत का अनुभव होता है।

यह पाठ अंटार्कटिका के भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करता है। लगभग 650 मिलियन वर्ष पहले, भारत और अंटार्कटिका गोंडवाना नामक एक सुपरकॉन्टिनेंट का हिस्सा थे। समय के साथ, टेक्टोनिक आंदोलनों के कारण भूमि का द्रव्यमान अलग हो गया, जिससे महाद्वीपों का निर्माण हुआ जैसा कि हम आज जानते हैं। अंटार्कटिका, जो कभी जंगलों और वन्यजीवों से भरा एक गर्म क्षेत्र था, एक बर्फीला रेगिस्तान बन गया।

लेखक ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे मानव सभ्यता केवल 12,000 वर्षों से अस्तित्व में है, फिर भी इस छोटे से समय में, हमने पर्यावरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। जीवाश्म ईंधन के जलने से ग्लोबल वार्मिंग हुई है, जो अंटार्कटिका के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डालती है। महाद्वीप की बर्फ की चादरें प्राचीन कार्बन रिकॉर्ड संग्रहीत करती हैं, जो वैज्ञानिकों को पिछले आधे मिलियन वर्षों में जलवायु परिवर्तनों को समझने में मदद करती हैं।

अंटार्कटिका इस बात का अध्ययन करने के लिए एकदम सही जगह है कि कैसे छोटे पर्यावरणीय परिवर्तन बड़े पैमाने पर प्रभाव डाल सकते हैं। फाइटोप्लांकटन का उदाहरण दिया गया है, छोटे समुद्री पौधे जो महासागर की खाद्य श्रृंखला का आधार बनाते हैं। ओजोन परत की कमी के कारण उन्हें कोई भी नुकसान पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को परेशान करेगा।

लेखक के लिए सबसे यादगार अनुभवों में से एक जमे हुए समुद्र पर चलना था। एक मीटर मोटी बर्फ की चादर के नीचे, 180 मीटर खारा पानी था, जो उसे प्रकृति में नाजुक संतुलन की याद दिलाता था। पाठ एक विचारोत्तेजक प्रश्न के साथ समाप्त होता है: क्या मानवीय गतिविधियाँ अंटार्कटिका की जलवायु को एक बार फिर बदल देंगी, जिससे यह लाखों साल पहले की तरह गर्म हो जाएगा? लेखक को एहसास है कि सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है और वह भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की सुरक्षा के महत्व पर जोर देता है।


Summary of all chapters of Class 12 English

Journey to the end of the Earth Explanation in Hindi

Journey to the end of the Earth का हिंदी अर्थ होगा – पृथ्वी के अंत तक की यात्रा। इस चैप्टर को एक भारतीय कवयित्री और पत्रकार तिशानी दोशी के द्वारा लिखा गया है। नीचे Class 12 NCERT English Vistas Supplementary Chapter 3 यानी Journey to the end of the Earth Class 12 का Paragraph wise Hindi Translation दिया गया है।

[1] Early……………………landmass.

इस वर्ष के प्रारंभ में मैंने पाया कि मैं खोज के काम में लगे एक रूसी जलयान पर सवार हूँ जिसका नाम एकेडमिक शोकाल्सकी है। मैं संसार के सबसे ठंडे, सबसे सूखे और तेज हवाओं वाले अंटार्कटिका महाद्वीप की तरफ बढ़ता जा रहा हूँ। मेरी यात्रा मद्रास में, भूमध्य रेखा के उत्तर में 13.09 डिग्री से प्रारंभ हुई और इसके दौरान नौ समय विभाग, छः चेक प्वाइंट, तीन समुद्र और कम से कम इतने ही वायुमंडलों (ईकोस्फीयर से) गुजरना पड़ा।

दक्षिणी महाद्वीप में कदम रखने से पहले में कार, हवाई जहाज और जलयान में कुल मिलाकर 100 घंटे से अधिक की यात्रा कर चुका था, अतः दक्षिणी महाद्वीप के विस्तृत सफेद भूदृश्य और अविरल नीले क्षितिज को देखकर मेरी पहली भावना शांति और चैन की थी, और उसके तुरंत बाद ही महान आश्चर्य की। विस्मित था उसकी विशालता, उसके अलगाव पर मुख्यतः इस बात पर कि कैसे कभी वह समय रहा होगा जब भारत और दक्षिणी महाद्वीप (अन्टार्कटिका) एक ही धरती के हिस्से थे।

[2] Six hundred…………………it today.

छः अरब पाँच करोड़ वर्ष पहले एक विशाल मिश्रित (जुड़ा हुआ) दक्षिणी अतिमहाद्वीप – गोंडवाना निश्चित रूप से अस्तित्व में था, जो मोटे तौर पर आज के अंटार्कटिका के चारों ओर स्थित था। स्थितियां उस समय बिल्कुल अलग थीं और विश्व दृश्य (पटलों) पर मानव नहीं पहुँच पाये थे। और जलवायु कहीं अधिक उष्ण थीं। विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ थीं। पाँच अरब वर्ष तक गोडवाना फलता-फूलता रहा, पर लगभग उस समय जब डायनासोर समाप्त हो रहे थे और स्तनधारी प्राणियों का युग प्रारंभ हो रहा था। धरती (गोंडवाना की धरती) देशों में अलग-अलग बटने के लिए मजबूर हो गयी और पृथ्वी का बहुत कुछ ऐसा रूप बना जो आज हमारे सामने है।

[3] To visit…………………the world.

इस समय अंटार्कटिका की यात्रा करना उस इतिहास का हिस्सा बनना है, यह समझना है कि हम कहाँ से आते हैं और किधर जा रहे हैं। इसका अर्थ है पृथ्वी की मुख्य पर्वत श्रेणी की परतों के महत्व को और कैंब्रियन युग के पहले की ग्रेनाइट चट्टानों से बने भू-भाग को समझना, ओजोन और कार्बन को समझना, विकास और विलोपन (प्रलय) को समझना, जब आप यह सोचने लगे कि ऐसा 10 लाख वर्षों में हो सकता है तब मस्तिष्क चकरा जाता है। जरा कल्पना करिए भारत उत्तर की ओर बढ़ता हुआ, एशिया की धरती की परत तोड़ने के लिए उसे धकियाता हुआ और हिमालय को बनाता हुआ, दक्षिणी अमेरिका से अलग हटकर उत्तरी अमेरिका की तरफ बढ़ता हुआ, एक ड्रेक दशैं बनाता हुआ जिससे ध्रुव के चारों ओर ठंडी जलधारा बही जो अंटार्कटिका को ठंडा, निर्जन और पृथ्वी पर सबसे निचले भाग में रखे हुए है।

[4] For a………………..good.

मेरे जैसे सूर्य-पूजक दक्षिण भारतियों के लिए, उस स्थान में दो सप्ताह रहना जहाँ संपूर्ण पृथ्वी 90% बर्फ का भंडार है, एक कष्टकारी स्थिति है (केवल रक्त संचार और शरीर की भौतिक व रासायनिक क्रियाओं के लिए नहीं बल्कि कल्पना के लिए भी)। यह कुछ ऐसा है जैसे कि कोई एक विशाल पिंग-पांग गेंद के अंदर चला जाये जहाँ मानवता के कोई चिह्न न हों, न वृक्ष, न विज्ञापन पट, न इमारतें। यहाँ आकर आप पृथ्वी से संबंधित सारे परिदृश्य और समय को भूल जाते हो। दृष्टि की पहुँच कभी माइक्रोस्कोपिक (सूक्ष्मतम) तो कभी बड़ी विशाल क्षुद्रतम प्राणियों से लेकर यहाँ नीली व्हेल और बर्फ के टीले हैं जो देशों के बराबर हैं (सबसे बड़ा बेल्जियम के बराबर तक का देखा गया है)। दिन चलते ही जाते हैं (समाप्त होने में नहीं आते), चौबीस घंटे अवास्तविक दक्षिणी प्रकाश में, और रहता है एक सर्वव्यापी सन्नाटा जो या तो तब टूटता है जब अचानक कोई बर्फ की नदी बनती है या कोई बर्फ की चट्टान टूट कर इस स्थान को पवित्र करती है। यह एक धर्मदीक्षा है जो आपको मजबूर कर देगी कि आप स्वयं को पृथ्वी के भू-गर्भीय इतिहास के संदर्भ में देखें और मानव के रोग की दिशा और परिणाम की भविष्यवाणी अच्छी नहीं है।

[5] Human…………………temperature.

मानव सभ्यता यहाँ पर मात्र 12,000 वर्षों से है जो भूगर्भीय घड़ी में यह मात्र कुछ सेकण्ड् ही होते हैं। उस छोटे से काल खंड में हमने काफी उथल-पुथल मचा दी है। प्रकृति के ऊपर अपना अधिकार हमने ग्रामों, कस्बों, नगरों और महानगरों के रूप में लिखा है। मानव की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हमें (सीमित साधनों के लिए दूसरी प्रजातियों से लड़ना पड़ा है और कभी कम न होने वाले खनिज तेलों (जीवाश्म ईंधन) के लगातार जलने के कारण पृथ्वी के चारों ओर कार्बन डाइऑक्साइड की एक चादर बन गयी है जो धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से पृथ्वी के औसत तापक्रम को बढ़ा रही है।

[6] Climate………………….to go.

मौसम का परिवर्तन हमारे समय की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय (बहस) है जिसे सर्वाधिक लड़ा गया है। क्या पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की चादर (पूरी तरह पिघल जायेगी? क्या यह संसार का अन्त होगा जैसा हम इसे जानते हैं। शायद, शायद नहीं। दोनों की स्थितियों में, अंटार्कटिका इस बहस का प्रमुख भाग है – न केवल इसलिए कि यह संसार का इकलौता ऐसा साधन है जहाँ कभी मानव जाति नहीं रही और इसलिए तुलनात्मक रूप से अपने मूल गौरव को बनाये हुए है बल्कि अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी परतों में पाँच लाख वर्ष पुराना कार्बन का रिकार्ड फंसा है। यदि हम पृथ्वी के वर्तमान, भूत और भविष्य का अध्ययन करना चाहते हैं तो अंटार्कटिका वह स्थान है जहाँ हमें जाना होगा।

[7] Students……………………,act.

‘बर्फ पर विद्यार्थी’ नामक कार्यक्रम था जिसमें मैं शोकाल्सकी के साथ काम कर रहा था, उद्देश्य बिल्कुल यही काम करना है, इसमें हाई-स्कूल के विद्यार्थियों को संसार के दूसरों किनारों पर ले जाकर, प्रेरणास्पद शिक्षा के उन्हें अवसर प्रदान किये जाय जिससे उनमें एक नई समझ (चेतना) का विकास और इस ग्रह के प्रति आदर उत्पन्न हो। ऐसा करते हुए छः वर्ष हो चुके हैं, इसका प्रमुख केनेडियन ज्योफ ग्रीन है जो ऐसे व्यक्तियों को वहाँ ले जाकर थक चुका था, जो प्रसिद्ध और रिटायर्ड, अमीर विचित्रता की खोज में लगे व्यक्ति हैं जो सीमित मात्रा में ही प्रतिदान इस यात्रा का दे सकते थे। ‘बर्फ पर विद्यार्थी’ कार्यक्रम के द्वारा वह नीति निर्माताओं की भावी पीढ़ी को उस छोटी उम्र में जब वह कुछ ग्रहण करने, सीखने और सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात कुछ करने के योग्य है तब वह उन्हें जीवन परिवर्तन करने वाले अनुभव प्रदान करता है।

[8] The reason…………………..real.

जिस कारण से यह कार्यक्रम इतना सफल रहा है वह यह कि दक्षिणी ध्रुव के आस-पास कहीं जाना और उससे प्रभावित न होना असंभव है। अपने-अपने अक्षांश और देशांतर में चैन से बैठकर, बर्फीले पर्वतों के पिघलने के बारे में उदासीन हो जाना आसान है पर जब आप अपने सामने ग्लेशियरों (हिमनदों) को पीछे हटते और बर्फ की चट्टानों का नष्ट होना देखते हैं। तब आप अनुभव करने लगते हैं कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान का खतरा बहुत वास्तविक है।

[9] Antarctica………………..place.

अपने सरल पर्यावरण और जीवन प्रणालियों की विविधता) में कमी के कारण अंटार्कटिका यह अध्ययन करने के लिए आदर्श स्थान है कि किस प्रकार पर्यावरण में होने वाले छोटे-छोटे परिवर्तनों का बड़ा प्रभाव हो सकता है। उदाहरण के लिए अति सूक्ष्म फाइटोप्लेकटन (जल में तैरने या बहने वाली वनस्पति) को ही ले लीजिए – समुद्र की वह घास जो पूरे दक्षिणी समुद्र की भोजन श्रृंखला को पोषण और आधार प्रदान करती है।) ये एक कोशिका वाले पौधे सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके उस विस्मयकारी और सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रिया द्वारा जिसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं, कार्बन ग्रहण करके कार्बन के यौगिक बनाते हैं। वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि ओजोन परत के और (क्षति होने से फाइटोप्लेंकटन के क्रियाकलापों पर असर पड़ेगा जिसका प्रभाव उस क्षेत्र के और समुद्री जीवों तथा पक्षियों पर पड़ेगा और पृथ्वी के कार्बन चक्र पर भी।
फोटोप्लॅकटन की इस कहानी में अस्तित्व का महान रूप छिपा है छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दीजिए और बड़ी-बड़ी चीजें अपने आप ठीक हो जायेंगी।

[10] My Antarctic………………….connect.

मेरा अंटार्कटिका का अनुभव इस प्रकार के दर्शनों से भरा था परंतु सर्वोत्तम वह था जो अंटार्कटिका वृत्त से बिल्कुल निकट 65.55 डिग्री दक्षिण में हुआ। प्रायद्वीप और टैडपोल आयलैण्ड के बीच एक सफेद बर्फ की पट्टी में सोकाल्सकी ने स्वयं को फंसा लिया था, जिस कारण अब इसका आगे बढ़ना (रुक रहा था। केप्टन ने निश्चय किया कि जहाज को वापस मोड़ा जाये और उत्तर की ओर चला जाये, पर हमारे ऐसा करने से पहले हमसे कहा गया कि हम तख्ते से उतरकर समुद्र के ऊपर चले। इस प्रकार हम सभी 52 लोग वाटरप्रूफ कपड़े, ऐंटी-ग्लेयर चश्मे पहन कर शुद्ध सफेदी के ऊपर चल रहे थे जो लगता था सर्वत्र फैली हुई थी। हमारे पैरों के नीचे एक मीटर मोटी कठोर बर्फ की पट्टी थी और उसके नीचे 180 मीटर गहरा जीवित, सांस लेता हुआ नमकीन पानी। किनारे पर केकड़े खाने वाली) सील मछलियों धूप खाती हुई बर्फ के टुकड़ों पर पड़ी थी। बहुत कुछ वैसे ही जैसे बरगद वटवृक्ष के नीचे आवारा कुत्ते पड़े होते हैं। यह सब किसी देव-दर्शन से कम नहीं था हर चीज बाकई एक दूसरे से जुड़ती लगती थी।

[11] Nine time………………..day makes!

नौ समय मण्डल, छः चौकियाँ (चैकप्वांइट), तीन समुद्र और कितने ही वायुमंडलों के पश्चात मैं अब भी अपने ग्रह (पृथ्वी) के संतुलन के सौंदर्य पर मुग्ध (चकित) था। अगर अंटार्कटिका एक बार फिर से वैसा ही गर्म प्रदेश बन जाये जैसा यह कभी था, तब क्या होगा? क्या हम (मानव जाति) इसे देखने के लिए जीवित बचेंगे अथवा हम वैसे ही चले जायेंगे जैसे कि डायनासोर या विशालकाय और बालों वाले राइनो (गेंडे) चले गये? कौन कह सकता है? पर उन किशोरों के साथ जिनमें पृथ्वी को बचाने का आदर्शवाद अभी है। दो सप्ताह बिताने के बाद, मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि दस लाख वर्षों में बहुत कुछ हो सकता है, परंतु एक दिन भी कितना अंतर पैदा कर देता है!

Jalandhar Paswan is pursuing Master's in Computer Applications at MMMUT Campus. He is Blogger & YouTuber by the choice and a tech-savvy by the habit.

Leave a Comment

Share via: