खुलकर सीखें के इस ब्लॉगपोस्ट The Interview Class 12 Summary & Explanation में आप Class 12 NCERT English Flamingo Chapter 7 यानि The Interview Class 12 का सारांश और लाइन बाई लाइन करके हिन्दी व्याख्या करना सीखेंगे।
सबसे पहले आप इस चैप्टर यानि The Interview के बारे में पढ़ते हुए लेखक के बारे में जानेंगे और फिर इस चैप्टर का Summary पढ़ने के बाद आप इस पाठ के एक-एक लाइन का हिंदी अनुवाद भी इसी पेज पर पढ़ सकेंगे।
About the Lesson – The Interview
“The Interview” is divided into two parts:
Part I is an excerpt from the introduction of ‘The Penguin Book of Interviews’, edited by Christopher Silvester. It explores the history, purpose, and mixed reactions to interviews as a journalistic form. Some view interviews as powerful tools for truth and communication, while others, especially celebrities, feel interviews invade privacy or misrepresent them.
Part II is an interview of Umberto Eco, a renowned Italian writer and academic, conducted by Mukund Padmanabhan from The Hindu. It highlights Eco’s views on writing, his intellectual pursuits, and how he manages his time. It also touches upon the success of his famous novel The Name of the Rose and how he views himself primarily as a professor rather than a novelist.
About the Lesson in Hindi
‘द इंटरव्यू’ दो भागों में विभाजित है:
भाग I, क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर की किताब The Penguin Book of Interviews से लिया गया है। इसमें बताया गया है कि पिछले 130 वर्षों में साक्षात्कार किस प्रकार पत्रकारिता का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। कुछ लोग साक्षात्कारों को सच्चाई और संचार के शक्तिशाली साधन मानते हैं, जबकि अन्य, विशेष रूप से मशहूर हस्तियों का मानना है कि साक्षात्कार निजता का हनन करते हैं या उन्हें गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं।
भाग II, प्रसिद्ध इतालवी लेखक और शिक्षाविद, उम्बर्तो इको का एक साक्षात्कार है, जो द हिंदू के मुकुंद पद्मनाभन द्वारा लिया गया है। यह इको के लेखन, उनकी बौद्धिक गतिविधियों और उनके समय प्रबंधन के बारे में विचारों पर प्रकाश डालता है। यह उनके प्रसिद्ध उपन्यास “द नेम ऑफ़ द रोज़” की सफलता और इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि वे खुद को एक उपन्यासकार के बजाय एक प्रोफ़ेसर के रूप में कैसे देखते हैं।
About the Author – The Interview
Christopher Silvester, born in 1959, is a British journalist and editor known for his deep interest in historical and literary subjects. He studied history at Peterhouse, Cambridge, and went on to work as a reporter for the satirical magazine ‘Private Eye’ for ten years. Over time, he contributed several features to Vanity Fair, showcasing his flair for engaging and insightful writing.
Umberto Eco, who is featured in the second part of the lesson, was a celebrated Italian scholar, novelist, and professor at the University of Bologna. He was globally renowned for his work in semiotics—the study of signs and symbols. He rose to literary superstardom with his novel ‘The Name of the Rose’, which combines detective fiction with deep philosophical and historical themes. Despite this fame, Eco always considered himself first and foremost a university professor who simply wrote novels on Sundays.
About the Author in Hindi
क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर, जिनका जन्म 1959 में हुआ था, एक ब्रिटिश पत्रकार और संपादक हैं जो ऐतिहासिक और साहित्यिक विषयों में अपनी गहरी रुचि के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कैम्ब्रिज के पीटरहाउस में इतिहास का अध्ययन किया और व्यंग्य पत्रिका ‘प्राइवेट आई’ में दस वर्षों तक एक रिपोर्टर के रूप में काम किया। समय के साथ, उन्होंने वैनिटी फेयर में कई फ़ीचर लेखों में योगदान दिया, जिसमें उनकी आकर्षक और व्यावहारिक लेखन प्रतिभा का प्रदर्शन किया गया।
अम्बर्टो इको, जिनका इस पाठ के दूसरे भाग में उल्लेख किया गया है, एक प्रसिद्ध इतालवी विद्वान, उपन्यासकार और बोलोग्ना विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे। वे सांकेतिक विज्ञान (संकेतों और प्रतीकों के अध्ययन) में अपने काम के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध थे। वे अपने उपन्यास ‘द नेम ऑफ़ द रोज़’ से साहित्यिक सुपरस्टार बने, जिसमें जासूसी कथाओं को गहन दार्शनिक और ऐतिहासिक विषयों के साथ जोड़ा गया है। इस प्रसिद्धि के बावजूद, इको हमेशा खुद को एक विश्वविद्यालय प्रोफ़ेसर मानते थे जो रविवार को उपन्यास लिखते थे।
Summary of The Interview
The Interview is a two-part lesson that explores the art and impact of interviews. In the first part, Christopher Silvester discusses how interviews have become a popular and powerful journalistic tool over the last 130 years. While many consider interviews a source of truth and an art form, some famous writers like Lewis Carroll and Rudyard Kipling viewed them as an intrusion into privacy.
The second part is an actual interview of the Italian writer and scholar Umberto Eco by journalist Mukund Padmanabhan. Eco shares his views on writing, saying he uses small moments of free time to write and that all his work reflects his philosophical interests. Although he became famous for his novel The Name of the Rose, Eco sees himself more as a university professor than a novelist.
Hindi Summary of The Interview
साक्षात्कार दो भागों वाला एक पाठ है जो साक्षात्कारों की कला और प्रभाव की पड़ताल करता है। पहले भाग में, क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर चर्चा करते हैं कि पिछले 130 वर्षों में साक्षात्कार कैसे एक लोकप्रिय और शक्तिशाली पत्रकारिता माध्यम बन गए हैं। जहाँ कई लोग साक्षात्कारों को सच्चाई का स्रोत और एक कला मानते हैं, वहीं लुईस कैरोल और रुडयार्ड किपलिंग जैसे कुछ प्रसिद्ध लेखकों ने उन्हें निजता में दखलंदाज़ी माना।
दूसरा भाग पत्रकार मुकुंद पद्मनाभन द्वारा इतालवी लेखक और विद्वान अम्बर्टो इको का एक वास्तविक साक्षात्कार है। इको लेखन पर अपने विचार साझा करते हुए कहते हैं कि वे खाली समय के छोटे-छोटे पलों का उपयोग लेखन के लिए करते हैं और उनका सारा काम उनकी दार्शनिक रुचियों को दर्शाता है। हालाँकि वे अपने उपन्यास “द नेम ऑफ़ द रोज़” के लिए प्रसिद्ध हुए, इको खुद को एक उपन्यासकार से ज़्यादा एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में देखते हैं।
The Interview Summary in English
The Interview is a two-part chapter that examines the role of interviews in modern journalism and gives a glimpse into the life and thoughts of renowned author Umberto Eco.
Part I – By Christopher Silvester:
This section is taken from the introduction to The Penguin Book of Interviews, written by journalist Christopher Silvester. He traces the history and significance of the interview as a journalistic tool, which began around 130 years ago. Interviews have now become a routine part of the media and a key method through which people learn about public figures.
However, the chapter also discusses the mixed opinions about interviews:
- Some view them as a form of art and a means to reveal truth.
- Others, especially celebrity writers, see interviews as an invasion of privacy and feel they reduce their personality or dignity.
Famous personalities with strong negative views include:
- V.S. Naipaul, who believed people are hurt by interviews.
- Lewis Carroll, who never gave interviews and avoided fame.
- Rudyard Kipling, who considered interviews immoral and compared them to an assault.
- H.G. Wells, who called interviews an “ordeal” but later interviewed Stalin.
- Saul Bellow, who felt interviews were like “thumbprints on his windpipe”.
Despite these criticisms, the interview continues to be a powerful and influential medium. As Denis Brian said, “interviews help form our most vivid impressions of public figures today.”
Part II – Interview of Umberto Eco by Mukund Padmanabhan:
This part is a real interview between Mukund Padmanabhan, a journalist from The Hindu, and Umberto Eco, a famous Italian writer and academic.
Eco is known for his vast body of work, including novels, scholarly texts, essays, and children’s books. He became world-famous after his novel The Name of the Rose sold over 10 million copies.
In the interview, Eco shares:
- He is a university professor first, and writes novels “on Sundays,” meaning he writes in his free time.
- He has a philosophical interest that runs through all his work, whether fiction, essays, or academic writing.
- He makes use of interstices — small gaps of free time (like waiting for an elevator) — to write and be productive.
- His writing style is narrative and personal, even in academic work. He believes in telling the story of his research rather than writing dry, formal texts.
Eco also discusses the unexpected success of The Name of the Rose. Though the novel deals with complex subjects like theology and medieval history, it still became a bestseller. He points out that publishers often underestimate readers, assuming they only like simple content. But many readers enjoy deeper and more meaningful literature.
The Interview Summary in Hindi
‘साक्षात्कार’ दो भागों वाला एक अध्याय है जो आधुनिक पत्रकारिता में साक्षात्कारों की भूमिका की पड़ताल करता है और प्रसिद्ध लेखक अम्बर्टो इको के जीवन और विचारों की एक झलक प्रदान करता है।
भाग I – क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर द्वारा:
यह खंड पत्रकार क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर द्वारा लिखित द पेंगुइन बुक ऑफ़ इंटरव्यूज़ की प्रस्तावना से लिया गया है। वह एक पत्रकारिता उपकरण के रूप में साक्षात्कार के इतिहास और महत्व का पता लगाते हैं, जिसकी शुरुआत लगभग 130 साल पहले हुई थी। साक्षात्कार अब मीडिया का एक नियमित हिस्सा और सार्वजनिक हस्तियों के बारे में जानने का एक प्रमुख तरीका बन गए हैं।
हालाँकि, इस अध्याय में साक्षात्कारों के बारे में मिश्रित राय पर भी चर्चा की गई है:
- कुछ लोग इन्हें कला का एक रूप और सत्य को प्रकट करने का एक साधन मानते हैं।
- अन्य, विशेष रूप से प्रसिद्ध लेखक, साक्षात्कारों को निजता का हनन मानते हैं और महसूस करते हैं कि ये उनके व्यक्तित्व या गरिमा को कम करते हैं।
तीव्र नकारात्मक विचारों वाली प्रसिद्ध हस्तियों में शामिल हैं:
- वी.एस. नायपॉल, जिनका मानना था कि साक्षात्कारों से लोगों को ठेस पहुँचती है।
- लुईस कैरोल, जिन्होंने कभी साक्षात्कार नहीं दिए और प्रसिद्धि से बचते रहे।
- रुडयार्ड किपलिंग, जो साक्षात्कारों को अनैतिक मानते थे और उनकी तुलना हमले से करते थे।
- एच.जी. वेल्स, जिन्होंने साक्षात्कारों को एक “कठिन परीक्षा” कहा था, लेकिन बाद में स्टालिन का साक्षात्कार लिया।
- सॉल बेलो, जिन्हें लगता था कि साक्षात्कार “उनकी श्वासनली पर अंगूठे के निशान” जैसे हैं।
इन आलोचनाओं के बावजूद, साक्षात्कार एक शक्तिशाली और प्रभावशाली माध्यम बना हुआ है। जैसा कि डेनिस ब्रायन ने कहा, “साक्षात्कार आज सार्वजनिक हस्तियों के बारे में हमारी सबसे स्पष्ट धारणा बनाने में मदद करते हैं।”
भाग II – मुकुंद पद्मनाभन द्वारा अम्बर्टो इको का साक्षात्कार:
यह भाग द हिंदू के पत्रकार मुकुंद पद्मनाभन और प्रसिद्ध इतालवी लेखक एवं शिक्षाविद अम्बर्टो इको के बीच एक वास्तविक साक्षात्कार है।
इको अपने विशाल कार्यों के लिए जाने जाते हैं, जिनमें उपन्यास, विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ, निबंध और बच्चों की किताबें शामिल हैं। उनके उपन्यास “द नेम ऑफ द रोज़” की 1 करोड़ से ज़्यादा प्रतियाँ बिकने के बाद वे विश्व प्रसिद्ध हो गए।
साक्षात्कार में, इको बताते हैं:
- वह पहले एक विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हैं, और “रविवार को” उपन्यास लिखते हैं, यानी वह अपने खाली समय में लिखते हैं।
- उनकी दार्शनिक रुचि उनके सभी कार्यों में व्याप्त है, चाहे वह उपन्यास हों, निबंध हों या अकादमिक लेखन।
- वह लिखने और उत्पादक होने के लिए खाली समय के छोटे-छोटे अंतरालों (जैसे लिफ्ट का इंतज़ार करना) का उपयोग करते हैं।
- उनकी लेखन शैली कथात्मक और व्यक्तिगत है, यहाँ तक कि अकादमिक कार्यों में भी। वह नीरस, औपचारिक लेखन के बजाय अपने शोध की कहानी कहने में विश्वास करते हैं।
इको “द नेम ऑफ़ द रोज़” की अप्रत्याशित सफलता पर भी चर्चा करते हैं। हालाँकि यह उपन्यास धर्मशास्त्र और मध्यकालीन इतिहास जैसे जटिल विषयों से संबंधित है, फिर भी यह बेस्टसेलर बन गया। वह बताते हैं कि प्रकाशक अक्सर पाठकों को कम आंकते हैं, यह मानकर कि उन्हें केवल सरल सामग्री ही पसंद है। लेकिन कई पाठक गहन और अधिक सार्थक साहित्य का आनंद लेते हैं।
Summary of all chapters of Class 12 English
QnA of The Interview
The Interview Explanation in Hindi
इस चैप्टर को क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर के द्वारा लिखे गये पुस्तक ‘द पेंगुइन बुक ऑफ इंटरव्यूज़’ से लिया गया है। नीचे Class 12 NCERT English Flamingo Chapter 7 यानी The Interview Class 12 का Paragraph wise Hindi Translation दिया गया है।
Part-I
[1] Since its………………….interviewed.
130 वर्ष से थोड़े ज्यादा समय से जबसे इसका (साक्षात्कार का) आविष्कार हुआ था, साक्षात्कार पत्रकारिता में एक आम बात हो गई है। आज कल लगभग, हर साक्षर आदमी के जीवन में कभी न कभी साक्षात्कार पड़ा होगा, जबकि दूसरे दृष्टिकोणों से, पिछले वर्षों में कई हजार प्रसिद्ध व्यक्तियों का साक्षात्कार किया जा चुका है, उनमें से कुछ का साक्षात्कार बार-बार लिया गया है।
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि साक्षात्कार के बारे में उसके कार्यों के बारे में, तरीकों और गुणों के बारे में विचार काफी अलग-अलग है। वह बहुत ही प्रतियोक्तिपूर्ण दावा कर सकते हैं कि अपने उच्चतम रूप में यह (साक्षात्कार) सत्य का स्त्रोत हैं और व्यवहार में एक कला। (अर्थात् साक्षात्कार लेना और देना एक कला है जो उच्चतम बिन्दु पर पहुँचकर सत्य का पता लगा लेता है।)
अन्य आमतौर पर प्रसिद्ध लोग जो अपने आपको इसका शिकार समझते हैं इसे अपने जीवन में अनावश्यक, दखलंदाजी समझकर घृणा कर सकते हैं अथवा ऐसा महसूस करते हैं कि किसी न किसी तरह यह (साक्षात्कार) उन्हें छोटा करता है। ठीक वैसे जैसे कि पुरानी संस्कृतियों में ऐसा विश्वास किया जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी का फोटो खींच लेता है तो वह उस आदमी की आत्मा को निकाल लेता है।
वी.एस. नायपाल (वैश्विक लेखक के रूप में प्रसिद्ध) ने अपनी यात्रा सम्बन्धी पुस्तकों तथा अपने वृत्त-चित्र की रचनाओं में अपने पूर्वजों के देश के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए जो कि भारत में उन्हें 2001 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार मिला; महसूस करते हैं कि कुछ लोग साक्षात्कारों में घायल होते हैं और अपना कुछ हिस्सा (अंश) खो देते हैं। Alice in Wonderland के रचियता ल्यूस कैरोल के बारे में कहा जाता है की उसे साक्षातकर्ता से एक उसी समय का भय था और उसने साक्षात्कार देने को कभी हाँ नहीं की।
[2] It was…………………before.
इसका यह भय उसे बहुत महत्व दिए जाने का था जो उसे परिचितों, साक्षात्कारकर्ताओं और आटोग्राफ की माँग करने बाले अड़ियल लोगों से अनाकर्षित करता था (दूर रखता था) तथा बाद में वह बड़े सन्तोष और विनोद के साथ ऐसे लोगों को चुप रखने की अपनी सफल कहानी सुनाया करता था।
रुडयार्ड किपलिंग ने साक्षात्कारकर्ता के प्रति कहीं अधिक घृणापूर्ण दृष्टिकोण व्यक्त किया। 14 अक्टूबर, 1892 को उनकी पत्नी, केरोलाइन अपनी डायरी में लिखती है कि ‘बोस्टन से आए दो संवाददाताओं ने उनका दिन खराब कर दिया।’ वे लिखती हैं कि उनके पति ने संवाददाताओं से कहा, “मैं साक्षात्कार देने से मना क्यों करता हूँ? क्योंकि यह अनैतिक है। यह एक अपराध है, उतना ही अपराध जितना मेरे ऊपर किया गया आक्रमण और उतना ही दण्डनीय है। यह कायरतापूर्ण व अप्रिय है। कोई सम्माननीय व्यक्ति साक्षात्कार लेना नहीं चाहेगा और देना तो और भी बहुत कम (चाहेगा)” तथापि कुछ ही वर्ष पहले किपलिंग
ने ऐसा ही आक्रमण मार्क ट्वेन पर किया था।
[3] H.G. Wells……………….influence.
सन् 1894 में एच. जी. वेल्स ने एक साक्षात्कार में ‘साक्षात्कार की कठिन परीक्षा’ की ओर संकेत किया है परन्तु (वे) अक्सर बार-बार साक्षात्कार देते रहते हैं और चालीस वर्ष बाद उन्होंने स्वयं को ॉसफ स्टायलन का साक्षात्कार लेते हुए पाया। साउल बेलों जिन्होंने अनेक अवसरों पर साक्षात्कार देना स्वीकार करने के बावजूद भी साक्षात्कार को अपनी स्वास नली पर अँगूठे के निशान जैसा (किसी के द्वारा गला दबाये जाने जैसा) बताया। फिर भी, साक्षात्कार के दोषों के बावजूद यह सम्वाद का सर्वोच्च उपयोगी माध्यम है। “अन्य किसी समय से ज्यादा इन दिनों हमारी समकालीन लोगों के बारे में हमारे स्पष्ट विचार साक्षात्कार से ही बनते हैं।” डेनिस ब्राइन ने लिखा है, “लगभग हर अत्यन्त महत्वपूर्ण बात हम तक एक आदमी के दूसरे आदमी से प्रश्न पूछने के माध्यम से पहुँचती है। इसी वजह से, साक्षात्कारकर्ता अभूतपूर्व शक्ति और प्रभाव का स्थान रखता है अर्थात् साक्षात्कारकर्ता की भूमिका बहुत ही अहम् होती है।”
Part-II
[1] “I am………………..million copies.
“मैं एक प्रोफेसर हूँ जो रविवारों को उपन्यास लिखता है” अम्बैरटो इको।
निम्न अवतरण अम्बैरटो इको के एक साक्षात्कार का अंश है। द हिन्दू के सम्पादक मुकुन्द पद्मनाभन साक्षात्कारकी हैं। इटली में बोलोगना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अम्बैरटो इको उपन्यास लिखना शुरू करने से पहले ‘लक्षणशास्त्र, साहित्यिक व्याख्या और मध्ययुगीन सौन्दर्य शास्त्र’ पर अपने विचारों के लिए एक विद्वान के रूप में अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे। साहित्यिक उपन्यास, अकादमिक लेखन, निबन्ध, बच्च्चों की पुस्तकें, समाचार-पत्र के लिए लेख उनके द्वारा लिखित साहित्य अत्यन्त आश्चर्यजनक रूप से विशाल और व्यापक है। सन् 1980 में “The Name of the Rose’, के प्रकाशन के साथ, जिनकी एक करोड़ से भी ज्यादा अतियाँ बिकी, उन्हें बौद्धिक सुपरस्टार के समकक्ष दर्जा प्राप्त हो गया।
[2] Mukund…………………(laughs).
मुकुन्द: अंग्रेजी उपन्यासकार और विद्वान डेविड लॉज ने एक बार कहा था, “मैं नहीं समझ सकता किस तरह एक ही आदमी इतने काम करता है जितने वह (इको) करता है।”
अम्बैरटो इको : हो सकता है कि मैं बहुत-सी चीजें कर लेने का एहसास करता हूँ। पर अपने में मैं सन्तुष्ट हूँ कि मैं हमेशा वहीं एक चीज करता रहता हूँ।
मुकुन्द : यह कौन-सी चीज है?
अम्बैरटो इको : आह, अब यह समझाना कुछ ज्यादा ही मुश्किल है। मेरी कुछ दार्शनिक रुचियाँ हैं और उन्हें अपने शैक्षणिक कार्यों और उपन्यासों के माध्यम से प्राप्त करने की कोशिश करता हूँ। आप देखेंगे, यहाँ तक कि मेरी बच्चों की पुस्तकें भी अहिंसा और शान्ति के बारे में है, वही नैतिक और दार्शनिक रुचियों का गुच्छा (समूह) है। और फिर मेरा एक रहस्य है। क्या आपको पता है कि यदि ब्रह्माण्ड की खाली जगह को समाप्त कर दिया जाए, सारे परमाणुओं के स्थान को समाप्त कर दे तो क्या होगा? ब्रह्माण्ड मेरी मुट्ठी जितना हो जाएगा।
इसी तरह हमारे जीवन में भी बहुत सारे खाली स्थान होते हैं और में उन्हें खाली जगह कहता हूँ। मान लो आप मेरे घर आ रहे हो। आप लिफ्ट में हैं और जब आप ऊपर की तरफ आ रहे हो, मैं आपकी प्रतिक्षा कर रहा हूँ। यह एक खाली जगह रिक्त स्थान है। मैं खाली जगह में काम करता हूँ। आपकी लिफ्ट के प्रथम तल से तृतीय तल तक पहुँचने की प्रतीक्षा करते समय, मैं एक लेख पहले ही लिख चुका हूँ। (हँसते हुए)
[3] Mukund………………….to you.
मुकुन्द : निःसंदेह हर आदमी ऐसा नहीं कर सकता। आपके उपन्यासेत्तर (अकाल्पनिक लेखन और विद्वतापूर्ण लेखन में एक खास विनोदपूर्ण तथा व्यक्तिगत गुण हैं। यह नियमित शैक्षणिक शैली से स्पष्टतः हटकर है – जो निश्चय ही निरपवाद रूप से अव्यक्तिगत तथा प्रायः शुष्क और उबाऊ है। क्या आपने जानबूझकर अनौपचारिक मार्ग चुका है या यह ऐसी चीज है जो स्वाभाविक रूप से आपको प्राप्त हो गई है?
[4] Umberto……………………or less.
अम्बैरटो इको : जब मैंने इटली में अपना पहला डॉक्टरेट सम्बन्धी शोध निबन्ध प्रस्तुत किया तब एक प्रोफेसर ने कहा, “विद्वान किसी विषय के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं, फिर वह बहुत सारी झूठी परिकल्पनाएँ बनाते हैं, फिर वे उन्हें ठीक करते हैं, और अन्त में वे निष्कर्ष रखते हैं। इसके विपरीत, आपने अपने शोध की कहानी सुनाई है। यहाँ तक कि अपने प्रयासों और असफलताओं को भी शामिल किया है।” उसी समय, उसने जाना कि मैं सही था और मेरे शोध प्रबन्ध की पुस्तक को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया जिसका मतलब था कि उसने इसे (मेरे लेखन को) स्वीकार किया। उस समय 22 वर्ष की उम्र में मैं, समझ गया कि विद्वतापूर्ण पुस्तकें उसी तरह लिखी जानी चाहिए जैसे मैंने लिखी थीं- शोध की कहानी कहकर। यही कारण है मेरे निबन्धों में कथात्मक पहलू होता है और शायद यही कारण है मैंने इतनी देर से कथा साहित्य (उपन्यास) लिखना प्रारम्भ किया- पचास वर्ष की उम्र के आसपास।
मुझे याद है मेरा प्रिय मित्र रोनाल्ड बार्थस हमेशा इस बात से परेशान रहता था कि वह एक निबन्धकार है, एक उपन्यासकार नहीं। वह किसी न किसी दिन रचनात्मक लेखन करना चाहता था परन्तु ऐसा करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। मैंने इस तरह की कुण्ठा कभी महसूस नहीं की। मैंने संयोगवश उपन्यास लिखना शुरू किया। एक दिन मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था। इसलिए मैंने शुरू कर दिया (उपन्यास लिखना)। उपन्यासों ने सम्भवतया कथा कहने की मेरी रुचि को सन्तुष्ट किया।
[5] Mukund…………………..over 40.
मुकुन्द : उपन्यासों की बात करते हुए, एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री होने से लेकर आप ‘गुलाब का नाम’ के प्रकाशन के बाद शानदार तरीके से प्रसिद्ध हो गये। आपने कम से कम 20 विद्वतापूर्ण उपन्यासेत्तर लेखन के साथ-साथ आपने पाँच उपन्यास लिखे हैं:
अम्बैरटो इको : 40 से ज्यादा।
[6] Mukund………………..by this?
मुकुन्द : 40 से ज्यादा! उसमें एक लक्षणशास्त्र (लाक्षणिकी) पर लिखा गया प्रभावशाली लेखन कार्य है। किन्तु ज्यादातर लोगों से अम्बरटो इको के बारे में पूछिए और वह कहेंगे, “अरे वह उपन्यासकार है।” क्या इससे आप परेशान होते हैं?
अम्बैरटो इको : हाँ, क्योंकि मैं अपने आपको विश्वविद्यालय का प्रोफेसर मानता हूँ जो रविवार को उपन्यास लिखता है। यह कोई मजाक नहीं है। मैं अकादमिक सम्मेलनों में भाग लेता हूँ, पेन क्लब्स या लेखकों की सभाओं में नहीं। मेरी पहचान (शिक्षा के क्षेत्र में विद्वान) लोगों से हैं। अर्थात् में स्वयं को अकादमिक व्यक्ति, शिक्षा से संबंधित समझता हूँ। किन्तु ठीक है यदि उन (अधिकांश) लोगों ने केवल उपन्यास पढ़े हैं (हँसता है, कंधे उचकाता है)। मैं जानता हूँ कि उपन्यास लिखकर मैं ज्यादा पाठकों तक पहुँचता हूँ। मैं आशा नहीं कर सकता कि लक्षण शास्त्र के लेखन के मेरे दस लाख पाठक होंगे।
मुकुन्द : यह (बात) मुझे अपने अगले प्रश्न तक ले जाती है। गुलाब का नाम एक अत्यन्त गम्भीर उपन्यास है। एक स्तर पर एक लम्बी जासूसी कहानी है किन्तु यह तत्व मीमांसा, ईश्वर मीमांसा और मध्ययुगीन इतिहास की गहराई में भी जाती है। तथापि उसे विशाल पाठक समूह मिला। क्या आप उनसे पूरी तरह उलझ गए?
[7] Umberto………………….that.
अम्बैरटो इको : नहीं। पत्रकार चकित हैं। और कभी-कभी प्रकाशक। यह इसलिए होता है कि पत्रकार और प्रकाशक विश्वास करते हैं कि लोगों को कूड़ा (निम्न स्तर का साहित्य) पसन्द होता है और वे कठिनाई से पढ़कर प्राप्त भनुभवों को पढ़ना पसन्द नहीं करते हैं। सोचो, इस धरती पर 6 अरब लोग हैं। गुलाब का नाम की 1 से 1.5 करोड़ प्रतियाँ बिकी। अतः इस तरह मैं पाठ के छोटे से छोटे प्रतिशत तक ही पहुँच पाया। परन्तु ये ही वे पाठक हैं जो सरल अनुभव नहीं चाहते हैं या कम से कम हमेशा ऐसा नहीं चाहते। में स्वयं डिनर के बाद नौ बजे, टेलीविजन देखता हूँ और या तो मिआमी वॉइस या इमरजेन्सी रूम’ देखना चाहता हूँ। मैं इसका आनन्द ले सकता हूँ और मुझे इसकी जरूरत है परन्तु दिनभर नहीं।
मुकुन्द : क्या इस उपन्यास की बड़ी सफलता का इस तथ्य से कुछ सम्बन्ध है कि इसमें मध्ययुगीन इतिहास की चर्चा है जो कि…
[8] Umberto………………..a mystery.
अम्बैरटो इको : यह सम्भव है। परन्तु मैं आपको एक और कहानी सुनाता हूँ, क्योंकि मैं प्रायः चीनी बुद्धिमान आदमी की तरह कहानी सुनाता हूँ। मेरी अमेरिकन प्रकाशक ने कहा जबकि उसे मेरी पुस्तक पसन्द थी। उसने 3000 प्रतियों से ज्यादा बिकने की, ऐसे देश में उम्मीद नहीं की थी जहाँ किसी ने चर्च (कैथड्रल) नहीं देखी है या कोई लैटिन नहीं पड़ता है। अतः मुझे 3000 प्रतियों की पेशगी दी गई परन्तु अन्त में अमेरिका में 20-30 लाख प्रतियाँ बिकीं।
मेरी पुस्तक से पहले मध्ययुगीन इतिहास के बारे में बहुत सारी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। मैं समझता हूँ पुस्तक की सफलता एक रहस्य है। कोई उसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। मैं समझता हूँ कि मैंने ‘गुलाब का नाम’ दस वर्ष पहले या दस वर्ष बाद लिखी होती तो (परिणाम) वैसा न होता। उस समय यह इतनी सफल कैसे हो गई, यह एक रहस्य है।