खुलकर सीखें के इस ब्लॉगपोस्ट Indigo Class 12 Summary in Hindi में हम Class 12 NCERT English Flamingo Prose Chapter 5 यानि Indigo Class 12 का सारांश और लाइन बाई लाइन करके हिन्दी अनुवाद करना सीखेंगे। इस चैप्टर को फिलाडेल्फिया में जन्मे एक पत्रकार एवं लेखक लुई फिशर के द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लाइफ ऑफ महात्मा गांधी’ से लिया गया है।
Indigo Summary in Hindi
कहानी की शुरुआत गांधी की चंपारण के एक जिद्दी किसान राजकुमार शुक्ला से लखनऊ में 1916 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में मुलाकात से होती है। शुक्ला गांधी को चंपारण जाकर नील की खेती करने वाले किसानों के शोषण की जांच करने के लिए राजी करते हैं। गांधी उत्पीड़ित किसानों से बातचीत करते हैं, पूछताछ करते हैं और जमींदारों की अनुचित प्रथाओं को उजागर करते हैं। ब्रिटिश अधिकारियों के विरोध के बावजूद, गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थानीय लोगों और वकीलों का अपार समर्थन मिलता है।
उनके प्रयासों से एक आधिकारिक जांच की स्थापना होती है, जो जमींदारों को उनके जबरन वसूले गए धन का एक हिस्सा वापस करने के लिए मजबूर करती है। यह घटना गांधी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन जाती है और अहिंसक प्रतिरोध की जीत का प्रतीक है।
राजनीतिक लाभ से परे, गांधी शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार करके चंपारण में सामाजिक सुधारों की शुरुआत करते हैं। पाठ गांधी के व्यावहारिक दृष्टिकोण पर जोर देता है, जिसमें राजनीतिक सक्रियता को रोजमर्रा के मुद्दों को संबोधित करने के साथ जोड़ा गया था।
Indigo Summary in English
The story begins with Gandhi meeting Rajkumar Shukla, a persistent peasant from Champaran, at the 1916 Indian National Congress session in Lucknow. Shukla convinces Gandhi to visit Champaran to investigate the exploitation faced by indigo farmers. Gandhi interacts with the oppressed peasants, conducts inquiries, and uncovers the unfair landlord practices. Despite opposition from British officials, Gandhi’s civil disobedience garners immense support from locals and lawyers.
His efforts lead to the establishment of an official inquiry, which forces landlords to refund a part of their extorted money. The event becomes a turning point in Gandhi’s life and marks a victory for non-violent resistance.
Beyond political gains, Gandhi initiates social reforms in Champaran by improving education, hygiene, and health facilities. The lesson emphasizes Gandhi’s practical approach, which combined political activism with addressing everyday issues.
QnA: Indigo Class 12 Questions and Answers Up Board
Indigo Class 12 Hindi Translation
नीचे Class 12 NCERT English Flamingo Prose Chapter 5 यानी Indigo Class 12 Paragraph wise Hindi Translation दिया गया है।
[1] When I………………….on Nepal.
जब मध्य भारत में उनके आश्रम सेवाग्राम में, मैं सन् 1942 में गाँधी जी से पहली बार मिलने गया तो उन्होंने कहा, “मैं तुम्हें बताऊंगा कि कैसे मैंने अंग्रेजों के प्रस्थान का आग्रह करने का निश्चय किया। यह सन् 1917 की बात थी।” वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी के दिसम्बर 1916 में होने वाले वार्षिक सम्मेलन में लखनऊ गये थे। वहाँ पर दो हजार तीन सौ एक प्रतिनिधि और बहुत से दर्शक थे। कार्यवाही के दौरान गाँधीजी ने बताया, “किसी भी भारतीय किसान की तरह गरीब और दुबला-पतला दिखने वाला एक किसान मेरे पास आया और बोला, “मैं राजकुमार शुक्ला हूँ और मैं चम्पारन से हूँ और मैं चाहता हूँ कि आप मेरे जिले में आएँ।” गाँधी जी ने इस स्थान के बारे में कभी नहीं सुना था। यह ऊँचे हिमालय की तराई में नेपाल राज्य के समीप था।
[2] Under an…………………..from there.”
एक पुरानी व्यवस्था के अनुसार चम्पारण के किसान बँटाईदार थे। राजकुमार शुक्ला उनमें से एक था। वह अनपढ़ था परन्तु दृढ़-निश्चयी था। वह बिहार में ‘जमींदारी व्यवस्था’ के अन्याय के बारे में शिकायत करने के लिए काँग्रेस अधिवेशन में आया था और शायद किसी ने उससे कहा था, “गाँधी जी से बात करो।” गाँधी जी ने शुक्ला से कहा कि उन्हें कानपुर में किसी से मिलना है और वह भारत के अन्य भागों में जाने के लिए भी वचनबद्ध हैं। शुक्ला हर जगह उनके साथ गया। फिर गाँधी जी अहमदाबाद के पास अपने आश्रम लौट आये। शुक्ला उनके पीछे-पीछे आश्रम तक आ पहुँचा। कई सप्ताह तक उसने गाँधी जी का साथ बिल्कुल नहीं छोड़ा। “तारीख निश्चित करें।” उसने प्रार्थना की।
बटाईदार की लगन और कहानी से प्रभावित होकर गाँधी जी ने कहा, “मुझे अमुक-अमुक तारीख को कलकत्ता में होना (रहना) है, आ जाना और मुझसे मिलना और मुझे वहाँ से ले जाना।”
[3] Months………………….untouchable?
कई महीने बीत गये। जब गाँधी जी आये तब शुक्ला कलकत्ता में निश्चित स्थान पर कूल्हों के बल बैठा था, उसने गाँधी जी के फुर्सत में आने तक प्रतिक्षा की फिर दोनों बिहार के पटना शहर के लिए रेलगाड़ी में चढ़ गये। वहाँ शुक्ला उन्हें एक वकील के घर ले गया जिनका नाम राजेन्द्र प्रसाद था जो बाद में काँग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और भारत के राष्ट्रपति बने। राजेन्द्र प्रसाद कस्बे से बाहर थे किन्तु नौकर शुक्ला को एक ऐसे गरीब किसान के रूप में जानते थे जो उनके मालिक को नील की खेती करने वाले बँटाईदारों की सहायता करने के लिए बाते करके परेशान करता रहता था। इसलिये उसे व उसके साथी गाँधी जी को जिन्हें, उन्होंने दूसरा किसान समझा था आंगन (जमीन) पर ठहरने की अनुमति दे दी। किन्तु गाँधीजी को कुएँ से पानी भरने की अनुमति इसलिए नहीं दी गई कि कहीं उनकी बाल्टी की कुछ बूंदें पूरे (स्रोत) सारे कुएँ के पानी को गन्दा न कर दे, उन्हें कैसे पता चलता कि वह (गाँधीजी) अछूत नहीं थे।
[4] Gandhi………………………school.
शुक्ला जितनी जानकारी दे सकता था उससे ज्यादा पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए गाँधी जी ने पहले मुजफ्फरपुर जाने का फैसला लिया जो चस्पारन के रास्ते में था। अतः उन्होंने मुजफ्फरपुर के Arts College के प्रोफेसर J.B. Kripalani को एक तार (टेलीग्राम) भेज दिया जिनसे वे टैगोर के शान्तिनिकेतन में मिल चुके थे।
रेलगाड़ी 15 अप्रैल, 1917 की मध्यरात्री को पहुंची। कृपलानी छात्रों के विशाल समूह के साथ स्टेशन पर प्रतिक्षा कर रहे थे। वहाँ गाँधी जी प्रोफेसर मलकानी के घर दो दिन ठहरे जो सरकारी स्कूल के अध्यापक थे।
[5] It was………………………contract.
गाँधी जी ने टिप्पणी की, “उन दिनों एक सरकारी प्रोफेसर द्वारा मेरे जैसे व्यक्ति को ठहराना एक बड़ी असाधारण बात थी” छोटे स्थानों पर स्व-शासन के पक्षधरों के प्रति सहानुभूति दिखाने में भारतीय लोग डरते थे।
गाँधी जी के आने और उनके लक्ष्य की प्रकृति का समाचार शीघ्र फरपुर से होकर चम्पारन से फैल गया। चम्पारन के बंटाईदार ही मुजफ्फरपुर पैदल तथा वाहनों से अपने पक्षधर (हितैसी नेता) से मिलने आने लगे। किसान समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले मुजफ्फरपुर के वकील गाँधी जी से मिले, उन्होंने उन्हें उनके (किसानों के) केसों के बारे में बताया और अपनी फीस के आकार की जानकारी दी अर्थात् बताया कि वे कितनी फीस लेते थे।
बंटाईदारों से मोटी फीस लेने के कारण गाँधीजी ने वकीलों को फटकारी उन्होंने कहा “मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि हमें न्यायालयों में जाना बन्द कर देना चाहिए। इस प्रकार के मुकदमों को न्यायालयों में ले जाने से कोई भला नहीं होता। जहाँ किसान इतने कुचले हुए हैं और भयभीत हैं वहाँ न्यायालय बेकार है। भय से मुक्त होना ही उनके लिए असली राहत है।”
चम्पारन जिले की ज्यादातर कृषि योग्य भूमि बड़ी-बड़ी जागीरों में बंटी थी जिसके मालिक अंग्रेज थे और जिस पर भारतीय काश्तकार काम करते थे। मुख्य व्यवसायिक फसल ‘नील’ थी। जागीरदार सभी काश्तकारों को पूरी जमीन के 3/20 भाग या 15 प्रतिशत पर indigo बोने के लिए और indigo की पूरी फसल को किराये के रूप में देने के लिए मजबूर करते थे। यह दीर्घकालीन समझौते के अन्तर्गत किया जाता था।
[6] Presently………………..money back.
अब जागीरदारों को पता चला कि जर्मनी ने संश्लेषित indigo विकसित किया जाता था इस पर उन्होंने 15 प्रतिशत की व्यवस्था से मुक्त होने के लिए काश्तकारों से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए समझौता करवा लिया। साझा फसलों का समझौता किसानों के लिए परेशानी भरा था और बहुतों ने स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिये जिन्होंने विरोध किया उन्होंने वकील कर लिए, जागीरदारों ने ठगों को किराए पर रख लिया। इसी दौरान संश्लेषित indigo की सूचना उन अनपढ़ किसानों तक पहुँच गई जिन्होंने हस्ताक्षर कर दिये थे और उन्होंने अपने पैसे वापिस माँगने चाहे।
[7] At this………………………the order.
ऐसे समय पर गाँधीजी चम्पारन पहुँचे।
उन्होंने तथ्यों को प्राप्त करने की कोशिश में अपना काम शुरू किया। सबसे पहले वे अंग्रेज जागीरदारों के संगठन के सचिव से मिले। सचिव ने कहा कि वे किसी बाहरी आदमी को कोई जानकारी नहीं दे सकते। गाँधी जी ने उत्तर दिया कि वह कोई बाहरी आदमी नहीं थे।
फिर गाँधी जी तिरहुत डिविजन जिसमें चम्पारन जिला पड़ता था उसके ब्रिटिश अधिकारी कमीश्नर से मिले, गाँधी जी बताते हैं, “कमिश्नर मुझे डराने-धमकाने लगा और मुझे तुरन्त तिरहुत छोड़ने की सलाह दी।”
गाँधी जी ने तिरहुत नहीं छोड़ा बजाए इसके कि वह चम्पारन की राजधानी मोतिहारी की ओर चल पड़े। कई वकील उनके साथ चले। रेलवे स्टेशन पर विशाल भीड़ ने गाँधी जी का स्वागत किया वे एक घर पर गये और उसे मुख्यालय की तरह काम में लेते हुए अपनी जांच जारी रखी।
एक सूचना आई की पास के गाँव में एक किसान के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। गाँधी जी ने जाकर देखने का निश्चय किया, अगली सुबह वे हाथी की पीठ पर बैठकर निकल पड़े थे ज्यादा दूर नहीं गये थे कि पुलिस सुपरिन्टेनडेन्ट का सन्देशवाहक आ पहुंचा और उन्हें अपने वाहन में नगर लौटने का आदेश दिया। गाँधी जी ने आज्ञा का पालन किया। सन्देशवाहक गाँधी जी को अपनी गाड़ी में बिठाकर घर लाया जहाँ उसने उन्हें तुरन्त चम्पारन छोड़ने की अधिकारिक सूचना दी। गाँधी जी ने रसीद, पर हस्ताक्षर किए और इस पर लिखा कि वह आदेश का उल्लंघन करेंगे।
[8] In consequences………………………superiors.
परिणामस्वरूप गाँधी जी को अगले दिन न्यायालय में उपस्थित होने का कानूनी आदेश मिल गया। पूरी रात गाँधी जी जागते रहे। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद को प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आने के लिये तार किया। उन्होंने आश्रम के लिए निर्देश भेजे। उन्होंने तार द्वारा पूरी रिपोर्ट वायसराय को भेजी। सुबह मोतीहारी कस्बा किसानों से भर गया। वे नहीं जानते थे कि दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने क्या किया था। उन्होंने सिर्फ यह सुना था कि कोई महात्मा जो उनकी सहायता करना चाहता है वह अधिकारियों के साथ उलझ गया था।
न्यायालय के इर्द गिर्द हजारों की संख्या में उनका सहज प्रदर्शन अंग्रेजों के भय से उनकी मुक्ति की शुरुआत थी। गाँधीजी के सहयोग के बिना अधिकारी असहाय महसूस कर रहे थे। उन्होंने (गाँधी जी) भीड़ को नियन्त्रित करने में उनकी (अधिकारियों की) मदद की। वे विनम्र और मिलनसार थे, वे उनको अर्थात् अधिकारियों को इस बात का ठोस प्रमाण दे रहे थे कि अब तक डराने वाली और विरोध विहीन उनकी शक्ति को भारतीयों द्वारा चुनौती दी जा सकती थी। सरकार चकरा गई थी। पक्षकार के वकील ने (सरकारी वकील ने) जज से सुनवाई टालने का आग्रह किया। स्पष्ट था, अधिकारीगण अपने उच्चाधिकारियों से विचार-विमर्श करना चाहते थे।
[9] Gandhi………………………at liberty.
गाँधीजी ने इस देरी का विरोध किया। उन्होंने अपराध स्वीकार करते हुए एक कथन पढ़ा। उन्होंने न्यायालय में बताया कि वे “कर्तव्य के विरोधाभास” में फंसे थे – एक तरह कानून तोड़ने वाले के रूप में एक बुरा उदाहरण पेश नहीं करना चाहते, दूसरी तरफ, “मानवीय और राष्ट्रीय सेवा” करना चाहते थे जिसके लिए वे आये थे। उन्होंने जाने के आदेश का उल्लंघन किया,
“कानूनी अधिकारियों के प्रति आदर के अभाव के कारण नहीं, वरन् हमारे अस्तित्व के और भी बड़े कानून आत्मा की आवाज का पालन करते हुए।” उन्होंने उचित दण्ड की माँग की। मजिस्ट्रेट ने घोषणा की कि वह दो घण्टे के अवकाश के बाद निर्णय सुनाएगा और उन 120 मिनटों के लिए गाँधी जी से जमानत देने को कहा। गाँधीजी ने मना कर दिया। जज ने उन्हें बिना जमानत के छोड़ दिया। जब अदालत फिर शुरू हुई तो जज ने कहाँ कि वह कई दिन तक फैसला नहीं सुनायेंगे। इस दौरान उन्होंने गाँधी जी को स्वतन्त्र रहने की अनुमती दे दी।
[10] Rajendra………………………desertion.”
राजेन्द्र प्रसाद, ब्रज किशोर बाबू, मौलाना मजहरुल हक तथा अन्य कई प्रसिद्ध वकील बिहार से आ चुके थे। उन्होंने गाँधी जी से विचार विमर्श किया। गाँधी जी ने पूछा कि यदि उन्हें जेल भेजने की सजा सुनाई गई तो वे क्या करेंगे। आश्चर्य चकित कर वरिष्ठ वकील ने उत्तर दिया वे उन्हें सलाह देने और सहायता करने आए थे। यदि गाँधी जी जेल चले गये तो सलाह लेने के लिए कोई नहीं होगा और वे घर चले जाएंगे।
गाँधी जी ने पूछा बेटाईदारों के साथ होने वाले अन्याय का क्या होगा। वकील विचार विमर्श करने के लिए पीछे हट गये। राजेन्द्र प्रसाद ने उनके विचार विमर्श का परिणाम लिख लिया। “उन्होंने आपस में सोचा, गाँधी जी एक दम बाहरी व्यक्ति थे तो भी वे किसानों के लिए जेल जाने को तैयार थे। दूसरी ओर वे लोग जो न केवल आस-पास के जिलों के निवासी थे वरन् जो ऐसा दावा भी करते थे कि उन्होंने किसानों की सेवा की थी, यदि वे किसानों को इस तरह छोड़कर चले जाएंगे तो यह शर्मनाक धोखा होगा।”
[11] They………………………the landlords.
तद्नुसार ही वे गाँधी जी के पास वापस आए और उन्हें बताया कि वे उनके पीछे-पीछे जेल जाने को तैयार थे। उन्होंने विस्मय के साथ कहा, “चम्पारन की लड़ाई जीत ली गई है” फिर उन्होंने कागज का एक टुकड़ा लिया और (वकीलों के) समूह को (दो-दो) जोड़ों में विभक्त किया और (कागज पर लिखकर) क्रम तय कर दिया जिस क्रम से उन्हें गिरफ्तारी देनी थी।
कई दिन बाद गाँधी जी को यह जानकारी देते हुए मजिस्ट्रेट का सन्देश मिला कि राज्य के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर ने केस समाप्त करने का आदेश दिया था, आधुनिक भारत में पहली बार सविनय अवज्ञा की जीत हुई थी। गाँधीजी और वकीलों ने किसानों की शिकायतों की व्यापक स्तर पर जाँच का कार्य प्रारम्भ किया। लगभग दस हजार किसानों के बयान लिखे गये और अन्य साक्ष्यों के आधार पर टिप्पणियाँ लिखी गई। दस्तावेज जुटाए गये पूरा क्षेत्र जाँचकर्ताओं की गतिविधियों तथा जमींदारों के उग्र-प्रतिवाद से कंपित हो गया।
[12] In June…………………..Gandhi’s life.
जून में गाँधी जी को लेफ्टिनेन्ट गवर्नर सर एडवर्ड गेट के पास बुलाया गया। जाने से पहले गाँधी जी अपने प्रमुख सहयोगियों से मिले और न लौटने की स्थिति में फिर से सविनय अवज्ञा की विस्तृत योजना तैयार की।
गांधीजी ने लेफ्टिनेन्ट गवर्नर से चार मुलाकातें की, परिणामस्वरूप उसने (लेफ्टिनेन्ट गवर्नर ने) indigo बँटाईदारों की हालत का पता लगाने के लिए एक आधिकारिक आयोग गठित कर दिया। आयोग में जमींदार, सरकारी अधिकारी और किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि स्वयं गाँधी जी शामिल थे।
गाँधी जी शुरू में निरन्तर सात माह तक चम्पारन में रहे और फिर कई बार थोड़े-थोड़े से समय के लिए जाते रहे। एक अनपढ़ किसान की प्रार्थना पर कि गई आकस्मिक यात्रा, जिसकी कुछ ही दिन चलने की सम्भावना थी, ने गाँधी जी के जीवन का लगभग एक साल ले लिया।
[13] The official……………………deadlock.”
आधिकारिक जाँच ने बड़े-जमीदारों के विरुद्ध ढेर सारे ठोस सबूत इकट्ठा कर लिए और जब उन्होंने (सरकारी अधिकारियों ने) इसे देखा तो वे सिद्धान्ततः किसानों को पैसा वापिस करने के लिए सहमत हो गये। उन्होंने गाँधी जी से पूछा, “किन्तु हमें कितना चुकाना होगा?”
उन्होंने (सरकारी अधिकारियों) सोचा कि गाँधीजी पूरा पैसा वापिस मांगेगे जो उन्होंने गैर कानूनी रूप से व धोखे से बँटाईदारों से ऐठा था। उन्होंने सिर्फ 50 प्रतिशत माँगा। एक अंग्रेज कमिश्नर आदरणीय JZ. Hodga जिन्होंने चम्पारण की पूरी घटना नजदीक से देखी थी ने लिखा था, “वहाँ वह (गाँधी जी) जिद्दी या हठी प्रतीत हुए।” “शायद यह सोचकर कि वह (गाँधी) नहीं मानेंगे, जमींदारों के प्रतिनिधि ने 25 प्रतिशत तक लौटाने का प्रस्ताव किया और उसके (जमीदारों के प्रतिनिधि) के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब गाँधी ने उसकी बात पकड़ मान ली और इस तरह गतिरोध समाप्त कर दिया।”
[14] This settlement……………………disappeared.
इस समझौते को आयोग ने निर्विरोध स्वीकार कर लिया। गाँधीजी ने समझाया कि वापसी की रकम इस तथ्य की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण थी जितनी कि जमींदार लोग धन का कुछ हिस्सा देने के लिए मजबूर हो गये और इसके साथ ही अपनी प्रतिष्ठा का कुछ हिस्सा भी देने को मजबूर हो गये। इसलिए जहाँ तक किसानों का सवाल था, जमींदारों ने उनके साथ ऐसे बड़े आदमियों जैसा व्यवहार किया था मानो वे कानून से ऊपर हों अब किसानों ने देख लिया कि उसके पास अधिकार और रक्षक थे, उसने साहस करना सीख लिया। घटनाओं में गांधी जी की स्थिति को सही सिद्ध किया। कुछ ही वर्षों में अंग्रेज जागीरदारों ने अपनी जागीरें छोड़ दी जिन्हें किसानों को वापस दे दिया गया। Indigo की बटाईदारी समाप्त हो गई।
[15] Gandhi……………………sanitation.
गाँधी जी बड़े राजनीतिक तथा आर्थिक समाधानों से कभी भी सन्तुष्ट नहीं होते थे। उन्होंने चम्पारन के गाँवों में संस्कृति तथा सामाजिक पिछड़ापन देखा और वह इस बारे में शीघ्र ही कुछ करना चाहते थे। उन्होंने अध्यापकों से अपील की कि दो युवक – महादेव देसाई और नरहरी पारिख – जो अभी-अभी गाँधी जी के शिष्य बने थे तथा उनकी पत्नियों ने काम के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया। मुम्बई, पूना तथा अन्य दूरवर्ती भागों से कई लोग आ गये। गाँधी का सबसे छोटा पुत्र, देवदास आश्रम से आ गया और श्रीमती गाँधी उनकी पत्नी भी आ गईं। छः गाँवों में प्राइमरी स्कूल खोले गये। कस्तूरबा वैयक्तिक स्वच्छता तथा सामुदायिक स्वच्छता पर आश्रम के नियम सिखाती थी।
[16] Health……………………smell bad.
स्वास्थ्य के हालात दयनीय थे। गाँधी जी ने छः माह स्वेच्छा से सेवा करने के लिए एक डॉक्टर तैयार कर लिया। तीन दवाएँ (औषधियाँ) उपलब्ध थीं – अरण्डी का तेल, कुनैन और गन्धक का मलहम। जिस किसी की जीभ पर मैल जमा होता था उसे अरण्डी का तेल दिया जाता था। मलेरिया बुखार वालों को कुनैन तथा अरण्डी का तेल दिया जाता था, फोड़ा फुन्सी बाले को गन्धक का मलहम और अरण्डी का तेल दिया जाता था।
गाँधी जी ने महिलाओं के कपड़ों की गन्दी हालत देखी। उन्होंने कस्तूरबा से उनसे इस विषय में बात करने को कहा। एक औरत कस्तूरबा को अपनी झोपड़ी में ले गई और कहा देखो, “यहाँ कपड़ों के लिए कोई अलमारी या संदूक नहीं है। जो साड़ी मैंने पहन रखी है यही एक मात्र साड़ी मेरे पास है।”
चम्पारन में अपने लम्बे ठहराव के दौरान गांधी जी अपने आश्रम पर दूर से निगाह (दृष्टि) रख रहे थे। वे हाक द्वारा निर्देश भेजते तथा धन का लेखा-जोखा माँगते रहते थे। एक बार अपने आश्रम के निवासियों को उन्होंने लिखा कि समय आ गया है कि शौचालयों के पुराने गड्ढे भर दिये जाएँ तथा नये गड्ढे खोदे जाएँ अन्यथा पुराने गड्ढ़ों में से बदबू (दुर्गध) आने लगेगी।
[17] The Champaran……………………free.
चम्पारण की घटना गाँधी जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। उन्होंने स्पष्ट किया, “मैंने बहुत साधारण काम किया था। मैंने घोषणा की कि अंग्रेज मेरे अपने देश में मुझे आदेश नहीं दे सकते।” किन्तु चम्पारन की घटना अवज्ञा के एक कृत्य के तरह शुरू नहीं हुई है। यह बड़ी संख्या में निर्धन किसानों के कष्ट को दूर करने के एक प्रयास से उत्पन्न हुई। यह गाँधी का अपना विशिष्ट तरीका था- उनकी राजनैतिक विचारधाराएँ लाखों लोगों की रोजमर्रा की व्यवहारिक समस्याओं में गुथी हुई थी। उनकी वफादारी काल्पनिक चीजों में नहीं थी, यह वफादारी जीते-जागते मनुष्य के प्रति थी। इसके अलावा गाँधीजी जो कुछ करते उसमें वे एक नया स्वतन्त्र भारतीय ढालना चाहते थे जो अपने पैरों पर खड़ा हो सके और इस तरह भारत को स्वतन्त्र करा सकें।
[18] Early in…………………..together.
चम्पारन घटना के शुरू में ही एक अंग्रेज शान्तिदूत चार्ल्स फ्रीर एन्ड्रयूज जो महात्मा के समर्पित अनुयायी बन चुके थे, फिजी टापू पर अपनी सरकारी सेवा पर जाने से पूर्व विदाई लेने आए। गाँधी जी के वकील मित्रों ने सोचा कि Andrews का चम्पारन में ठहरना तथा उनकी मदद करना अच्छा होगा, एन्ड्रयूज रुकना चाहते थे यदि गाँधी जी सहमत होते। परन्तु गाँधी जी इसके सख्त खिलाफ थे। उन्होंने कहा, “तुम्हें लगता है कि इस गैर-बराबरी की लड़ाई में किसी अंग्रेज का हमारे पक्ष में होना फायदेमंद होगा। इससे आपके हृदय की कमजोरी प्रगट होती है। मुद्दा न्यायसंगत है और युद्ध जीतने के लिए आपको अपने ऊपर ही निर्भर होना चाहिए। मि० एन्ड्रयूज जो संयोगवश एक अंग्रेज हैं, उनके रूप में आप वैशाखी न ढूँढे।”
राजेन्द्र प्रसाद कहते हैं, “उन्होंने हमारे मन की बात ठीक-ठीक जान ली थी और हमारे पास कोई उत्तर नहीं था। …इस तरह गाँधी जी ने हमें स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाया। स्वावलम्बन, भारत की स्वाधीनता और बेटाईदारों की सहायता से सब एक दूसरे से जुड़े थे।