मुंशी प्रेमचंद: जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ व भाषा-शैली

आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह माने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद(Munshi Premchand) जी ने अपने साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 ईस्वी से किया था लेकिन उनकी पहली हिंदी कहानी ‘सौत‘ नाम से सरस्वती पत्रिका के दिसंबर अंक में 1915 में प्रकाशित हुई थी। वे हिंदी के श्रेष्ठ कहानीकार, मूर्धन्य नाटककार और महान उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं।

खुलकर सीखें के आज के इस ब्लॉगपोस्ट के माध्यम से हम मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा-शैली, और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में पढ़ेंगे।

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

Munshi Premchand ka Jeevan Parichay: उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ईस्वी को वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। बचपन में उनका नाम ‘धनपत राय’ था। उनके पिता ‘मुंशी अजायब राय‘ थे जो लमही में डाकमुंशी थे एवं माता का नाम ‘श्रीमती आनंदी देवी‘ था। उनकी शिक्षा का प्रारंभ उर्दू और फारसी से हुआ था। पढ़ने का शौक उन्हें बाल्यावस्था से ही था। 13 वर्ष की छोटी उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरूबा पढ़ लिया और उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिरजा रुसबा और मौलाना शरर के उपन्यासों से भी परिचय प्राप्त कर लिया।

मात्र सात वर्ष की आयु में ही उनकी माता तथा चौदह वर्ष की आयु में उनके पिता का देहांत हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन अत्यन्त संघर्षमय रहा। उनका पहला विवाह मात्र पंद्रह वर्ष की उम्र में ही हो गया था लेकिन वह असफल रहा। वे आर्य समाज से बहुत प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा सामाजिक व धार्मिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और सन् 1906 ईस्वी में दूसरा विवाह बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संतानें हुई – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

मैट्रिक की परीक्षा पास करने के पश्चात वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए। उन्होंने नौकरी के साथ ही पढ़ाई भी जारी रखा। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी व इतिहास विषय से इंटर की परीक्षा पास की और सन् 1919 ईस्वी में उन्होंने बी०ए० पास किया। इसके बाद सन् 1921 ईस्वी में वे गोरखपुर में स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। लेकिन महात्मा गाँधी के आह्वान पर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी।

इस समय तक प्रेमचंद अपनी रचना हिन्दी में ‘धनपतराय‘ के नाम से और उर्दू में ‘नवाबराय‘ के नाम से लिखते थे। लेकिन महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने सन्‌ 1915 ई० में ‘प्रेमचंद’ नाम धारण करके हिंदी-साहित्य जगत में पदार्पण किया। जीवन के अंतिम दिनों में, वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। अंततः 8 अक्टूबर, सन् 1936 ईस्वी में जलोदर रोग से ग्रसित होने के कारण काशी स्थित उनके गाँव में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनका अंतिम उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ को उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया।

मुंशी प्रेमचंद को 'कथा-सम्राट', 'उपन्यास-सम्राट', 'कलम का सिपाही', 'आधुनिक हिंदी कहानी का पितामह' इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय

Munshi Premchand ka Sahityik Parichay: प्रेमचन्द जी में साहित्य-सृजन की जन्मजात प्रतिभा थी। शुरुआत में वह ‘नवाब राय’ के नाम से उर्दू भाषा में कहानियाँ एवं उपन्यास लिखते थे। इनकी “सोजे-वतन” नामक क्रान्तिकारी रचना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी हलचल मचायी कि अंग्रेज सरकार ने इनकी यह कृति जब्त कर ली।

सन्‌ 1915 ई० में इन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर ‘प्रेमचंद’ नाम धारण करके हिंदी-साहित्य जगत में पदार्पण किया और लगभग एक दर्जन उपन्यास और तीन सौ कहानियाँ लिखीं। इसके अलावा इन्होंने ‘मर्यादा‘ और ‘माधुरी‘ पत्रिकाओं का सम्पादन किया तथा ‘जागरण‘ एवं ‘हंस‘ नामक पत्र का प्रकाशन भी किया।

इन्होंने जनता की बात को जनता की भाषा में रखा तथा अपने कथा साहित्य के माध्यम से तत्कालीन मध्यम व निम्न वर्ग का सच्चा चित्र प्रस्तुत किया। जनता के दुःख-दर्द का गायक प्रेमचंद को सच्चे अर्थों में ‘कलम का सिपाही’ कहा जाता है। इस महान्‌ कथाकार को भारतीय साहित्य-जगत में ‘उपन्यास सम्राट‘ की उपाधि से विभषित किया गया है।

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएँ

Munshi Premchand ki Pramukh Rachnaye: प्रेमचंद ने कहानी, नाटक, जीवन-चरित और निबंध के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का अभूतपूर्व परिचय दिया। Munshi Premchand ki Rachnaye अर्थात उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

प्रेमचन्द जी की निम्नलिखित कृतियाँ उल्लेखनीय हैं:

(1) उपन्यास: ‘कर्मभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘निर्मला’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘वरदान’, ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’, ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘मंगलसूत्र(अपूर्ण)’।

(2) नाटक: ‘कर्बला’, ‘प्रेम की वेदी’, ‘संग्राम’ और ‘रूठी रानी’।

(3) जीवन-चरित: ‘कलम’, ‘तलवार और त्याग’, ‘दुर्गादास’, ‘महात्मा शेखसादी’ और ‘राम चर्चा’।

(4) निबन्ध-संग्रह: ‘कुछ विचार’।

(5) सम्पादित: ‘गल्प रत्न’ और ‘गल्प-समुच्चय’।

(6) अनूदित: ‘अहंकार’, ‘सदासुख’, ‘आजाद-कथा’, ‘चाँदी की डिबिया’, ‘टॉलस्टाय की कहानियाँ’ और ‘सृष्टि का आरम्भ।

(7) कहानी-संग्रह: ‘सप्त सरोज’, ‘नवनिधि’, ‘प्रेम पूर्णिमा, ‘प्रेम पचीसी’, ‘प्रेम-प्रसून’, ‘प्रेम प्रतिमा’, ‘प्रेम-गंगा’, ‘प्रेम-चतुर्थी’, ‘प्रेम द्वादशी’, ‘समर-यात्रा’, ‘मानसरोवर(दस भाग)’, ‘कफन’, ‘ग्राम्य जीवन की कहानियाँ’, ‘प्रेरणा’, ‘कुत्ते को कहानी’, ‘ मनमोदक’, ‘अग्नि-समाधि’, और सप्त-सुमन।

मुंशी प्रेमचंद की भाषा-शैली

Munshi Premchand ki Bhasha Shaili: प्रेमचन्द जी की कृतियों में भाषा के दो रूप मिलते हैं- एक रूप वह है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है; और दूसरा रूप वह हैं जिसमें उर्दू, हिन्दी तथा संस्कृत के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। शब्दों के सुंदर प्रयोग से भाषा अत्यधिक सजीव, व्यावहारिक और प्रवाहमयी बन जाती है। उनकी भाषा सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण, व्यावहारिक, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है।

प्रेमचन्द जी विषय एवं भावों के अनुरूप शैली को परिवर्तित करने में निपुण थे। उन्होंने अपने साहित्य में मुख्य रूप से पाँच शैलियों का प्रयोग किया है जो निम्नलिखित हैं-

  • वर्णनात्मक शैली
  • विवेचनात्मक शैली
  • मनोवैज्ञानिक शैली
  • हास्य-व्यंग्यप्रधान
  • भावात्मक शैली

Jalandhar Paswan is pursuing Master's in Computer Applications at MMMUT Campus. He is Blogger & YouTuber by the choice and a tech-savvy by the habit.

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